Move to Jagran APP

कभी कौमी एकता के वाहक, आज वीरान

चंदन नेगी, अल्मोड़ा एतिहासिक शहर अल्मोड़ा में ऐसे प्राचीन ब्लैक बोर्ड हैं, जिन्होंने आजादी के संघ

By Edited By: Published: Sun, 04 Dec 2016 05:59 PM (IST)Updated: Sun, 04 Dec 2016 05:59 PM (IST)
कभी कौमी एकता के वाहक, आज वीरान

चंदन नेगी, अल्मोड़ा

loksabha election banner

एतिहासिक शहर अल्मोड़ा में ऐसे प्राचीन ब्लैक बोर्ड हैं, जिन्होंने आजादी के संघर्ष व सांप्रदायिक फसाद के दौर में अलख जगाने व नये संदेश देकर जागृति लाने का काम किया। मगर एक जमाने में हर सूचना के लिए इन पर सैकड़ों नजरें फिरती थीं, मगर आज उपेक्षा का दंश झेल रहे हैं।

बात भले ही सामान्य ब्लैक बोर्ड की हो रही है। मगर मामला सोचनीय है। वह दौर, जब सूचना तंत्र कमजोर था, ना टेलीफोन, ना पर्याप्त अखबार। ऐसे में एक-दूसरे को सूचना देने, सामाजिक कुरीतियों के खिलाफ तंज कसने और आजादी के संघर्ष में अलख जगाने का सहारा ये ब्लैक बोर्ड बने। ये ब्लैक बोर्ड अल्मोड़ा में दो जगहों लाला बाजार व माल रोड में कलेक्ट्रेट मार्ग के समीप स्थापित हैं। लाला बाजार में स्वतंत्रता सेनानी मधुसूदन गुरुरानी ने ये बोर्ड वर्ष 1937 में स्थापित किए थे। जो पट्टी नुमा तीन थे और बीच में सीमेंट से तिरंगा बना था, जिस पर सत्यमेव जयते लिखा था। इसके बाद दूसरा बोर्ड माल रोड में कलेक्ट्रेट मार्ग के निकट है। उन दशकों में सामाजिक कुरीतियों के खिलाफ तंज कसने हों, जनता को कोई संदेश या सूचना देनी हो अथवा आजादी की लड़ाई से संबंधित कोई सूचना देनी हो, तो यही बोर्ड सहारा थे। लोग दूर-दूर से इन बोर्डो को देखने पढ़ने आते थे यानी अभावों के उस दौर में ये बोर्ड जागृति के वाहक और कौमी एकता के गवाह बने। मगर आज उपेक्षित हो चले। जिन पर भौतिक सुख व संचार माध्यमों का बढ़ना भारी पड़ा। आज सिर्फ लाला बाजार वाले बोर्ड में कभी-कभार कोई खोया-पाया सूचना मिलती है, तो कभी विभागीय टेंडर। इसके अलावा जागृति के ये वाहक आज वीरान हो गए। कोई प्रचार सामग्री से ढक गया, तो कोई फड़ों से घिर गया। किसी को कोई सुध नहीं कि इन्हें संरक्षित रखा जाए। इन बोर्डो का उपेक्षा का हाल ये है कि मानों ये कह रहे हों -

'हम गुम हैं उपेक्षा में, वरना कई इतिहास हमने बनाए हैं।

आज नजर नहीं किसी की, जागृति के मशाल हमने भी जगाए हैं।'

क्या कहते हैं वरिष्ठजन

प्राचीन सूचना बोर्डो के बाबत स्वतंत्रता संग्राम सेनानी स्व. मधुसूदन गुरुरानी के पौत्र एवं वरिष्ठ सामाजिक कार्यकर्ता किशन गुरुरानी कहते हैं कि इन बोर्डो को संजो कर रखने की जरूरत है। एक जमाने में इन्होंने बेहद महत्वपूर्ण भूमिका अदा की है। वहीं वरिष्ठ साहित्यकार डॉ. रमेश चंद्र पांडे राजन का कहना है कि वास्तव में कुछ दशकों पहले तक लोग इनमें नई सूचना तलाशने आते थे। आज भी तात्कालिक तौर पर सूचनाओं के आदान-प्रदान व जागृति में इनका इस्तेमाल हो सकता है। मगर सुध ली जानी चाहिए।


Jagran.com अब whatsapp चैनल पर भी उपलब्ध है। आज ही फॉलो करें और पाएं महत्वपूर्ण खबरेंWhatsApp चैनल से जुड़ें
This website uses cookies or similar technologies to enhance your browsing experience and provide personalized recommendations. By continuing to use our website, you agree to our Privacy Policy and Cookie Policy.