वन की आग से कार्बन उत्सर्जन नुकसानदेह
संवाद सहयोगी, अल्मोड़ा: जंगलों में हर साल आग की घटनाएं बढ़ने से पर्यावरण वैज्ञानिक भी चिंतित हैं। जंग
संवाद सहयोगी, अल्मोड़ा: जंगलों में हर साल आग की घटनाएं बढ़ने से पर्यावरण वैज्ञानिक भी चिंतित हैं। जंगल की आग से हजारों हेक्टेअर जंगल राख होते हैं। साथ ही भारी मात्रा में कार्बन वायुमंडल में उत्सर्जित होती है। इससे ग्लेशियरों के पिघलने की रफ्तार में तेजी आने की आशंका है।
जीबी पंत हिमालय पर्यावरण एवं विकास संस्थान के वैज्ञानिकों के अनुसार पिछले करीब डेढ़ दशक में उत्तराखंड के जंगलों में आग की घटनाओं की संख्या साढ़े चार हजार हेक्टेअर से ज्यादा ही है। इससे प्रतिवर्ष लाखों की वन संपदा नष्ट हो रही है और कई लोगों की जान ले ली। संस्थान के वैज्ञानिकों के अनुसार वर्ष 2012 में सुदूर संवेदन के माध्यम से किए गए एक अध्ययन में पूरे हिमालयी क्षेत्र में प्रतिवर्ष करीब 3800 के इर्द-गिर्द वन की आग की घटनाएं होती हैं। इससे करीब 1,12,900 हेक्टेअर वन क्षेत्र जल जाता है और करीब 431 टन कार्बन का वायुमंडल में उत्सर्जन होता है। इससे कार्बन युक्त धुएं के हवा द्वारा फैलने से ग्लेशियरों के पिघलने की रफ्तार बढ़ने आशंका काफी बढ़ जाती है। इसके अलावा अन्य कई दुष्प्रभाव इस आग से होते हैं। वैज्ञानिक मत है कि दुष्प्रभावों को ध्यान में रखते हुए वन की आग पर नियंत्रण के विकल्पों की जरूरत है। इसी क्रम में संस्थान ने कई सुझाव दिए हैं।
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क्या हैं प्रमुख सुझाव
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= चीड़ वनों पर नियंत्रण व आबादी व सड़कों के इर्द-गिर्द चीड़ प्रजाति को हटाना।
= चीड़ की टहनियों का छटान कर पिरुल की मात्रा में कमी लाना।
= लीसा टपान के लिए वृक्षों की मोटाई का मानक 30 सेमी से अधिक करना।
= अति संवेदनशील स्थानों पर नियमित रूप से पिरुल का फुकान करना।
= पिरुल का औद्योगिक इस्तेमाल व क्रय रेट बढ़ाना।
= ग्रामीणों की वनों पर दिलचस्पी बढ़ाना व उन्हें प्रशिक्षित करना।
= जंगलों में मिट्टी की नमी बढ़ाने के उपाय करना।
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समस्या के समाधान की रणनीति एवं उसके क्रियान्वयन आपसी समन्वय से हो सकता है। लोगों में वैज्ञानिक सोच विकसित करने के बाद ही कोई कदम उठाना और सुझावों पर अमल करना पर्यावरण संतुलन के हित में होगा। आग विनाशकारी है, मगर विवेक पूर्ण ढंग से लगाई गई आग एक पारिस्थितिकी औजार के रूप में भी प्रयोग हो सकती है।
:: डॉ. पीपी ध्यानी, निदेशक, पर्यावरण एवं विकास संस्थान कोसी कटारमल अल्मोड़ा
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