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यूपी के दिए हाइड्रम कर दिए बेदम

जागरण टीम, रानीखेत/गरमपानी पृथक उत्तराखंड राज्य में उम्मीदों के उलट पर्वतीय कृषि नीति डेढ़ दशक

By Edited By: Published: Wed, 25 Nov 2015 10:31 PM (IST)Updated: Wed, 25 Nov 2015 10:31 PM (IST)
यूपी के दिए हाइड्रम कर दिए बेदम

जागरण टीम, रानीखेत/गरमपानी

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पृथक उत्तराखंड राज्य में उम्मीदों के उलट पर्वतीय कृषि नीति डेढ़ दशक बाद भी धरातल पर नहीं उतर सकी है। आलम यह है कि दुश्वारियों से भरी खेती को आसान व सुविधाजनक बनाने की तकनीक तो तंत्र इजाद नहीं कर सका, उल्टा उत्तर प्रदेश सरकार के दौरान जो सिंचाई संसाधन मिले थे, उनका सदुपयोग भी नहीं किया जा सका। नतीजतन सौ से ज्यादा नहरों व गूलों के आज तक बेपानी होने के बाद कोसी घाटी में बेदम पड़े करोड़ों की लागत वाले हाइड्रम खुद की प्यास बुझाने को तरस रहे हैं।

::: केस एक ::::

ताड़ीखेत ब्लॉक में ज्याड़ी गांव की हाइड्रम परियोजना 80 के दशक में बनी थी। 1993 की भीषण आपदा में कोसी ने इसे तबाह कर दिया था। तब से सरकारों व योजनाकारों ने नदी किनारे जहां-तहां पड़े उपकरणों को पुनर्जीवित करने की जहमत तक नहीं उठाई। नतीजतन खेतों तक पानी पहुंचाने के बजाय हाइड्रम खुद की मरम्मत की राह तक रहे।

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केस दो

सब्जी व फल उत्पादक बेल्ट डोबा (बेतालघाट) की खेती सींचने के लिए 1990 में उत्तर वाहिनी शिप्रा नदी पर परियोजना की नीव पड़ी। बाढ़ का प्रकोप तो इसे कोई क्षति न पहुंचा सका, मगर रखरखाव के अभाव में परियोजना दम तोड़ गई। झाड़ियों के बीच हाइड्रम प्लांट इतिहास बना है।

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केसी तीन

शिप्रा नदी में ही उपजाऊ कैंची गांव के लिए बनी हाइड्रम परियोजना भी तंत्र की उपेक्षा का शिकार है। पाइप लाइन में अरसे से पानी नहीं चला है। किसान बारिश के भरोसे फसल उगा तो रहे पर उपज की गारंटी नहीं।

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::: केस चार :::

बसगांव के लिए 90 के दशक में बनी परियोजना 2010 की आपदा में नेस्तनाबूत हो गई थी। मगर तंत्र पर्वतीय कृषि नीति में हाइड्रम परियोजनाओं को पुनर्जीवित करने की अपनी ही बात भूल गया। अब यह प्लांट भी इतिहास बन गया है। यही हाल सिमलखा, मलियाल व गैरखाल गांव का भी है। यहां कागजों में तो हाइड्रम परियोजना जिंदा है, मगर अन्नदाताओं के खेतों तक बूंद तक नहीं पहुंच रही।

== इंसेट==

उठ रही जांच की मांग

किसानों की बेहतरी के लिए आरटीआई कार्यकर्ता दिलीप सिंह बोहरा ने यूपी सरकार में करोड़ों की लागत से बनी हाइड्रम परियोजनाओं को पुनर्जीवित करने व विभागीय लापरवाही को बड़ी वजह मान उच्च स्तरीय जांच की मांग की है।

वर्जन

हमने 2012 में ही ज्वॉइन किया है। 2010 की त्रासदी में 90 फीसद हाइड्रम परियोजनाएं ध्वस्त हो गई थीं। जिला योजना में प्रस्ताव भेजे गए थे। लगभग 45 लाख रुपये स्वीकृत हो चुके हैं। क्षतिग्रस्त परियोजनाओं का पुनर्निर्माण जल्द शुरू करेंगे।

-बृजेश कुमार गुप्ता, अधिशासी अभियंता लघु सिंचाई


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