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चौदह साल बीते, विपणन को मोहताज किसान

जागरण संवाददाता, अल्मोड़ा : भले ही शासन-प्रशासन कृषि विकास के दावों का ढिंढोरा कितना ही पीटा जाए, मगर

By Edited By: Published: Wed, 02 Sep 2015 11:07 PM (IST)Updated: Wed, 02 Sep 2015 11:07 PM (IST)
चौदह साल बीते, विपणन को मोहताज किसान

जागरण संवाददाता, अल्मोड़ा : भले ही शासन-प्रशासन कृषि विकास के दावों का ढिंढोरा कितना ही पीटा जाए, मगर पहाड़ के किसान राहत में नहीं हैं। एक ओर ये 'अन्नदाता' विषम भौगोलिक परिस्थितियों में हाड़तोड़ मेहनत कर खेती करते हैं, मगर दूसरी ओर उत्तराखंड में किसानों के सामने पहाड़ जैसी समस्याएं हैं। मगर यहां के अन्नदाताओं के लिए सरकारें आज तक विपणन की सुविधा नहीं जुटा पाई। बाजार उपलब्ध कराने के लिए मंडी तो दूर संग्रहण केंद्र तक नहीं खुल पाए। हालात यह हैं कि हाड़तोड़ मेहनत कर उसे लागत मूल्य तक नहीं मिल पाता।

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अलग राज्य गठन के बाद खुशहाल उत्तराखंड की कल्पना तो जरूर हुई और करीब सात साल पहले छोटी जोत के किसानों कृषि नीति भी अस्तित्व में आई। मगर धरातल पर हालात घिसे-पिटे ही रहे। सरकारी तंत्र की कमी के कारण किसान आज आज भी परेशान ही हैं। कभी सूखा, तो ओलावृष्टि व अतिवृष्टि की मार झेल रहे किसान संकट पर संकट उठा रहे हैं। यूं तो किसानों को बेहतर सुविधाएं देने और कृषि को बढ़ावा देने के दावे होते आए हैं। मगर सब्जी व फलोत्पादन पर ही नजर गढ़ाई जाय, तो अकेले अल्मोड़ा जिले में ही हजारों हेक्टेयर क्षेत्र में हजारों मीटरीटन फल व सब्जी उत्पादन होता है। मगर उन्हें विपणन सुविधा के अभाव में औने-पौने दामों में बेचना पड़ता है और काफी सब्जियां सड़-गल कर खराब हो जाती हैं। संग्रहण केंद्र खोलने की बात लंबे समय से चली आ रही है, मगर ऐसा आज तक हो नहीं सका। जिले में एकमात्र शीत भंडार गृह एक था, मगर अव्यवस्था के चलते वह भी सालों से ठप पड़ा है।

:::::: बाक्स ::::::

जिले में फसलों का उत्पादन

खाद्यान्न कुल क्षेत्रफल उत्पादन (हे.) (मी. टन)

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धान व दालें 110528 127686

तिलहनी फसल 990 940

सभी फल 23171 173651

सभी सब्जियां 5509 57752

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