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कभी पानीदार थे, आज पहचान को मोहताज

सुरेंद्र नेगी, अल्मोड़ा कुमाऊं की सांस्कृतिक नगरी की धरोहर के तौर पर पहचान रखने वाले जल स्रोतों

By Edited By: Published: Fri, 24 Oct 2014 10:31 PM (IST)Updated: Fri, 24 Oct 2014 10:31 PM (IST)
कभी पानीदार थे, आज पहचान को मोहताज

सुरेंद्र नेगी, अल्मोड़ा

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कुमाऊं की सांस्कृतिक नगरी की धरोहर के तौर पर पहचान रखने वाले जल स्रोतों (नौले) का वजूद खतरे में है। कभी यहां सौ से अधिक जल स्त्रोत थे पर अब घटकर महज दर्जनभर रह गए हैं।

कभी नगर के लगभग हर मोहल्ले में एक जल स्त्रोत हुआ करता था। इन्हीं जल स्त्रोतों के नाम से क्षेत्र विशेष को अलग पहचान मिली। उदाहरण के लिए चम्पानौला, धारानौला, ढूंगाधारा नौला, रानीधारा नौला। बीडी पांडे की पुस्तक कुमाऊं का इतिहास में अल्मोड़ा नगर में सौ से अधिक जल स्त्रोतों का उल्लेख है। इसके अनुसार चंद शासकों ने शहर में कई जल स्त्रोतों का निर्माण कराया था। बाद में सामाजिक सरोकारों से जुड़े नामचीन लोगों ने भी जल स्त्रोत बनवाए। इनमें से कई जल स्त्रोत ऐतिहासिक महत्व के हैं तो कुछ कुमाऊं की स्थापत्य कला के उत्कृष्ट नमूने।

अब कंक्रीट के जंगल में तब्दील होती जा रही सांस्कृतिक नगरी में इन धरोहरों का कोई सुधलेवा नहीं। संरक्षण के ठोस प्रयास नहीं हो रहे। नतीजतन बचे-खुचे स्त्रोत जर्जर हालत में हैं। कई जल स्त्रोत अतिक्रमण की चपेट में हैं। हालत यह है कि अब केवल आधा दर्जन जल स्त्रोतों का पानी ही पीने योग्य रह गया है।

मेहराबदार शैली में बनते थे जल स्त्रोत : प्राकृतिक जल स्रोतों के शुद्ध पानी को पेयजल के रूप में इस्तेमाल करने के लिए पर्वतीय क्षेत्रों में जल स्त्रोतों का निर्माण स्थानीय पत्थरों से होता था। इनकी दीवार बनाने में चिकनी मिट्टी इस्तेमाल की जाती थी। इनको मेहराबदार शैली में बनाया जाता था और छत चौड़े पत्थरों से बनती थी। जल स्त्रोत के भीतर प्रवेश के लिए चार से पांच फीट ऊंचा प्रवेश द्वार होता था। अधिक मात्रा में पानी इकट्ठा करने के मकसद से जमीन की ऊपरी सतह से करीब चार से छह फीट की गहराई पर इनका निर्माण किया जाता था। पानी की जरूरत की पूर्ति के लिए प्राय: हर गांव में भी एक जल स्त्रोत होता था। गांव वहीं पर बसाए जाते थे जहां धारे के रूप में कोई प्राकृतिक जल स्रोत हो। स्थानीय नदियों के करीब बसे गांव इसके अपवाद हो सकते हैं।

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इनसेट--

संरक्षण को पालिका नहीं देती कोई तवज्जो

जल स्त्रोतों के संरक्षण में पालिका प्रशासन भी कोई दिलचस्पी नहीं ले रहा। शहर के प्राकृतिक जल स्रोतों पर शोध कर चुके स्थानीय निवासी प्रफुल्ल पंत बताते हैं कि पालिका के 1925 में बने बायलाज में जल स्त्रोतों में कपड़े धोने पर न्यूनतम 25 रुपये जुर्माने का प्रावधान है। लेकिन, आज जल स्त्रोतों के रखरखाव और संरक्षण की ओर किसी का भी ध्यान नहीं है, ऐसे में पालिका के उपनियम भी इतिहास का हिस्सा बन चुके हैं।

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इनसेट डिब्बी --

प्रमुख जल स्त्रोत

चम्पानौला, धारानौला, सुनारीनौला, सिद्धनौला, ढूंगाधारा नौला, रानीधारा नौला, बद्रेश्वर नौला।


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