दृष्टिबाधितों के मसीहा लुई ब्रेल
डीके जोशी, अल्मोड़ा : द्ृष्टिहीनों के लिए ब्रेल लिपि का आविष्कार करने वाले सर रॉबर्ट लुई ब्रेल ने दृष्टिबाधितों को समाज की मुख्य धारा से जोड़ने के लिए अथक कार्य किया। इसलिए दुनिया का हर दृष्टिबाधित उन्हें अपना मसीहा मानता है। ब्रेल लिपि के आविष्कार के लिए लुई हमेशा दुनिया में याद किए जाते रहेंगे।
लुई ब्रेल का जन्म 4 जनवरी, 1809 में फ्रांस के पेरिस शहर से 25 मील दूर कुप्रे गांव में साधारण परिवार में हुआ था। उनके पिता रेने सिमन ब्रेल एक गरीब व्यक्ति थे। लुई ब्रेल अपने 4 भाई-बहनों में सबसे छोटे थे। लुई का जन्म उसकी बहन के जन्म के 11 वर्र्षो के बाद हुआ था। इसलिए वह सभी के लिए एक जीता-जागता खिलौना था और सभी उसे बहुत प्यार करते थे। उनके पिता सिमन एक वर्कशॉप चलाते थे। जनवरी, 1812 में लुई अपनी पिता की कार्यशाला में औजार से चमड़ा काटने का यत्न कर रहे थे कि औजार सीधे उनकी आंख में जा लगा। इससे उसकी आंख की रोशनी चली गई। कुछ समय बाद उसके दूसरे आंख की भी रोशनी छीन गई। इस समय अबोध लुई मात्र 3 साल का था। उन दिनों नेत्रहीन बच्चों को शिक्षा देने का चलन न के बराबर था। कुप्रे के चर्च के पादरी ने जैक्बिंस पेलुई ने लुई की बहुमुखी प्रतिभा को देखते हुए उन्हें पेरिस के अंध विद्यालय में प्रवेश दिलाया। उन्होंने इस विद्यालय में विभिन्न विषयों का गहन अध्ययन किया। उन्होंने इस विद्यालय के वर्कशॉप में कपड़ा व स्लीपर बनाने में दक्षता हासिल की। 8 अगस्त, 1828 को उन्हें विद्यालय में अध्यापक के रूप में नियुक्त किया गया। वह शिक्षक के रूप में बहुत लोकप्रिय हुए । उन्होंने दंड देकर पढ़ाने की सदियों पुरानी पद्धति त्यागकर स्नेहपूर्वक पढ़ाने का तरीका अपना कर अनूठी मिसाल पेश की। लुई नेत्रहीनों की समस्याओं के बारे में हमेशा चिंतित रहते थे। उनकी आर्थिक स्थिति कभी अच्छी नहीं रही। साल 1825 में उन्होंने मात्र 16 वर्ष की उम्र में नेत्रहीनों के लिए ब्रेल लिपि का आविष्कार किया। इस मिशन को पूरा करने की धुन में उन्होंने अपने शरीर का ध्यान नहीं रखा। उनका स्वास्थ्य लगातार गिरता चला गया। 26 वर्ष की आयु में ही वह क्षय रोग से पीड़ित हो गए। 35 वर्ष की आयु में उनका स्वास्थ्य बहुत खराब हो गया और मात्र 43 वर्ष की आयु में 6 जनवरी 1852 में उनका देहांत हो गया। लुई का जीवन संघर्ष दृष्टिबाधितों को हमेशा प्रेरणा देता रहेगा।
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