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वाराणसी भगदड़ः सवा सौ साल पुरानी धरोहर राजघाट गंगापुल

धर्म, संस्कृति और शिक्षा की राजधानी काशी में एक धरोहर मालवीय पुल भी है जो भारतीय उपमहाद्वीप का पहला पुल माना जाता है।

By Nawal MishraEdited By: Published: Sat, 15 Oct 2016 07:49 PM (IST)Updated: Sat, 15 Oct 2016 11:27 PM (IST)
वाराणसी भगदड़ः सवा सौ साल पुरानी धरोहर राजघाट गंगापुल

वाराणसी (जेएनएन)। धर्म, संस्कृति और शिक्षा की राजधानी काशी में एक धरोहर मालवीय पुल भी है जो भारतीय उपमहाद्वीप का पहला पुल माना जाता है। इसके ऊपर सड़क मार्ग तो नीचे डबल ट्रैक वाला रेलवे मार्ग बनाया गया है। सन 1887 में अस्तित्व में आया यह पुल पूरे एशिया में अपनी तरह का पहला पुल था। मालवीय सेतु के नाम से भी जाना जाने वाला यह पुल कई बार जर्जर हुआ और कई बार इसकी मरम्मत की गई। गंगा पर बना यह पुल एक अक्टूबर सन 1887 में जब पहली बार इकहरी (सिंगल) रेल लाइन और पैदल पथ के लिए खोला गया तब यह डफरिन पुल के नाम से इतिहास के पन्नों में दजऱ् हुआ।

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आज़ादी के बाद 5 दिसंबर 1947 को इस पुल का नाम पंडित मदन मोहन मालवीय को समर्पित करते हुए मालवीय पुल रख दिया गया। इस ऐतिहासिक पुल को अवध और रूहेलखंड के इंजीनियरों ने मिलकर बनाया था। जब तत्कालीन महाराज बनारस श्री प्रसाद नारायण सिंह की उपस्थिति में इस पुल का शुभारंभ हुआ तब एक नयी इबारत लिखी गयी। वक्त के थपेड़ों को झेलता हुआ यह 1048.5 मीटर लंबा यह पुल अब धीरे धीरे जर्जर हो रहा है।

कुछ साल पहले इस पुल की मियाद ख़त्म हो गयी थी, तब इस पर से भारी वाहनों का आवागमन तत्कालीन बसपा सरकार ने रोक दिया था, लेकिन दो साल पहले रेलवे व पीडब्ल्यूडी की आपसी सहमति से इसकी पैचिंग और बाइंडिंग दोबारा से की गयी और समाजवादी सरकार के आते ही इसपर एक बार फिर से भारी वाहन आने जाने लगे। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के संसदीय क्षेत्र बनारस और गृहमंत्री राजनाथ सिंह के गृह जनपद चंदौली को जोडऩे वाला यह पुल अपने अस्तित्व की लड़ाई कब तक लड़ेगा, कोई नहीं जानता।

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