वाराणसी से 'कल्चरल टूरिज्म' का पैगाम लेकर लौटेगा जी-20
जी20 के प्रतिनिधि गुरुवार को वाराणसी से विदा होने से पूर्व भगवान बुद्ध की ऐतिहासिक स्थली सारनाथ से भी रूबरू होंगे।
वाराणसी (राकेश पांडेय)। अंतरराष्ट्रीय फलक पर पहले से ही प्रतिष्ठित काशी को आम सैलानियों के बीच से उठाते हुए खास मेहमानों की नजर में लाने की जबरदस्त कोशिश करने में कामयाब रहे हैं प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी। बतौर सांसद वाराणसी में अपनी पहली सभा में मोदी ने ब्रांड बनारस और यहां की सांस्कृतिक विरासत को दुनिया भर में पहुंचाने का वादा किया था। उनकी कोशिशों में लगातार वह वादा शामिल है। इसी क्रम में जी-20 के मेहमान मोदी के बनारस से 'कल्चरल टूरिज्म' का पैगाम लेकर गुरुवार को लौटेंगे।
वाराणसी को दुनिया की नजरों में और अधिक विशिष्ट बनाने की दिशा में मोदी ने बड़ा प्रयास किया दिसंबर 2015 में जापान के प्रधानमंत्री शिंजो अबे को यहां का मेहमान बनाकर। काशी भ्रमण कराते हुए शिंजो आबे को मोदी ने गंगा आरती में शामिल कराया। इसके बाद से ही वाराणसी आने वाले जापानी सैलानियों की संख्या में और इजाफा हो गया। इतना ही नहीं जापान और वाराणसी के बीच सीधे रिश्ते कायम हुए जिसके तहत जापान इंटरनेशनल कोआपरेशन एजेंसी ने और प्रतिबद्धता के साथ यहां काम शुरू किया।
क्योटो व बीएचयू के बीच करार हुआ। संबंधों की प्रगाढ़ता का यह सिलसिला जारी है। इसी क्रम में जापान वाराणसी में कन्वेशन सेंटर बनवाने जा रहा है। उधर, केंद्र सरकार ने काशी के महत्व को समझते हुए यहां के पारंपरिक उत्पादों को दुनिया तक पहुंचाने के लिए अंतरराष्ट्रीय स्तर का ट्रेड फैसिलिटेशन सेंटर स्थापित कराया। विदेशी मेहमानों के आवागमन की सहूलियत को ध्यान में रखते हुए बाबतपुर एयरपोर्ट पर दूसरे देशों से अधिकाधिक सीधी उड़ान की सुविधा मुहैया कराई जा रही है।
अपने वादे को पूरा करने के क्रम में ही मोदी सरकार के प्रयासों से 'सिटी ऑफ टेंपल्स' के तौर पर विख्यात वाराणसी को यूनेस्को ने 'सिटी ऑफ म्यूजिक' का भी खिताब दिया। इस उपलब्धि को अधिक दिन हुए भी नहीं थे कि अब सीधे जी-20 के फ्रेमवर्क वर्किंग ग्रुप की बैठक अपने संसदीय क्षेत्र में कराते हुए मोदी ने एक और ऐतिहासिक घटनाक्रम का गवाह वाराणसी को बना दिया। जी-20 की बैठक में शामिल होने आए सभी मेहमान अपने यहां के पालिसी और ओपिनियन मेकर हैं।
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उन्होंने वाराणसी प्रवास के दौरान गंगा किनारे घाट श्रृंखला की शानदार विरासत को भरपूर निहारा। अब वे गुरुवार को वाराणसी से विदा होने से पूर्व भगवान बुद्ध की ऐतिहासिक स्थली सारनाथ से भी रूबरू होंगे। काशी में सांस्कृतिक पर्यटन की असीम संभावनाओं को देखकर यह विदेशी मेहमान जब लौटेंगे तो नि:संदेह अपने-अपने देशों व सर्किल में मुक्तकंठ गुणगान करते फिरेंगे। इससे न सिर्फ पर्यटन बढ़ेगा बल्कि पारंपरिक व्यवसायों को भी लाभ पहुंचेगा।
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