स्टीम इंजन दिलाएगा छोटी लाइन की याद
वाराणसी : लगभग 25 वर्ष पहले कैंट स्टेशन से मीटरगेज यानी छोटी लाइन की ट्रेनें गुजरती थीं। ज्यादातर गा
वाराणसी : लगभग 25 वर्ष पहले कैंट स्टेशन से मीटरगेज यानी छोटी लाइन की ट्रेनें गुजरती थीं। ज्यादातर गाड़ियां स्टीम इंजन से ही चलती थीं। बाद में मीटरगेज समाप्त कर ब्राडगेज लाइन पर ट्रेनें दौड़ने लगीं हैं। यह यात्रियों को बताने के लिए रेलवे बोर्ड ने रिटायर हो चुके मीटरगेज का इंजन मॉडल के रूप में कैंट स्टेशन पर रखने का निर्णय लिया। इसके तहत जर्जर हो चुके इंजन को दो भागों में बांटकर ट्रेलर की मदद से बनारस लाया गया है। अब इसे लोगों के आकर्षण का केंद्र बनाने के लिए सजा- संवार कर मुख्य भवन के सामाने स्थापित किया जाएगा। इस इंजन को प्रदर्शित करने का मकसद है वाराणसी आने वाले यात्रियों को अहसास कराना कि यहां छोटी लाइन भी थी जिस पर स्मीट इंजन से गाड़ियां चलाई जाती थीं।
वैसे, बनारस की पहचान डीजल रेल इंजन से होती है। यहीं पर डीजल लोकोमोटिव कारखाना है जहां हर वर्ष औसतन 250 इंजन तैयार किए जाते हैं। अब तो डीरेका में बिजली व डीजल दोनों से चलने वाले इंजन भी बनाए जा रहे हैं। डीजल इंजन के मॉडल को कैंट स्टेशन के प्रथम श्रेणी यात्री हाल में रखा गया था। लगभग 20 वर्ष पहले उसे हटाकर उसी स्थान पर पूछताछ केंद्र खोला गया। रेलवे के इंजीनिय¨रग विभाग ने उस इंजन के मॉडल को कबाड़ मानकर सर्कुलेटिंग एरिया में फेंक दिया। वर्षो धूप व बारिश से मॉडल अपनी पहचान खो बैठा। इन दिनों उसी मॉडल को आरक्षण केंद्र के एक कोने में उठाकर रखा गया है।
मुख्य क्षेत्रीय प्रबंधक रवि प्रकाश चतुर्वेदी ने बताया कि उस इंजन के मॅाडल का संरक्षण कराया जाएगा। साथ ही पुराने तथा जर्जर हो चुके स्टीम इंजन को भी काशी की पहचान के रूप में रख जाएगा ताकि यात्रियों को पता चल सके कि बनारस में भी छोटी लाइन थी।