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अब सभी हुए अखिलेशवादी

वाराणसी : समाजवादी परिवार में तकरार और फिर दो फाड़ के बाद मयसाइकिल सपा अखिलेश के हाथ आबाद होने साथ सभ

By Edited By: Published: Tue, 17 Jan 2017 02:11 AM (IST)Updated: Tue, 17 Jan 2017 02:11 AM (IST)
अब सभी हुए अखिलेशवादी
अब सभी हुए अखिलेशवादी

वाराणसी : समाजवादी परिवार में तकरार और फिर दो फाड़ के बाद मयसाइकिल सपा अखिलेश के हाथ आबाद होने साथ सभी अखिलेशवादी हो गए। हालांकि ऐसा रार आरंभ के साथ भी दिखा था लेकिन चुनाव आयोग का फैसला आने के साथ अपवाद भी खत्म हो गए। इसमें वह भी शामिल रहे जिनके पहली, दूसरी और बाद की सूची में शिवपाल यादव ने नवाजा था। पार्टी व चुनाव चिन्ह की जीत के जश्न में ऐसे उम्मीदवारों ने भागीदारी तो की ही एक दूसरे को बधाइयां देने में कहीं अधिक ही सक्रियता भी दिखाई। फ्लैश बैक से उनकी निष्ठा दिखाए जाने पर पार्टी के सदा एक होने, मुलायम सिंह यादव के संरक्षक और अखिलेश यादव के नेतृत्व में दूसरे दलों को चुनौती देने का हवाला दे दिया। अब तक मुलायमवादी होने का राग छेड़ते रहे पुरनियों ने भी इसका स्वागत किया।

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सपा ने विस चुनाव के मद्देनजर छह माह पहले प्रदेश की अन्य सीटों समेत बनारस की सभी आठ सीटों पर टिकट घोषित किए थे। इसमें बाद में कई बदले भी जाते रहे लेकिन अखिलेश यादव ने इनमें से एक पर प्रत्याशी घोषित करने के साथ एक अन्य पर शिवपाल यादव की सूची के नाम को ही दोहरा दिया था। पूर्वाचल की कई सीटों पर यह भी हालात रहे जिसमें प्रत्याशी दोनों खेमे की सूची में हैं। इससे सिर्फ अखिलेश की सूची वाले प्रत्याशियों के अलावा अमूमन सभी में असमंजस के हालात के साथ इस मुद्दे पर बोलने की बजाय मुंह छिपाने के ही हालात थे।

दरअसल, सपा में दंगल की स्थिति आने के साथ जंग का आधार युवा जोश ही माना जा रहा था। इसके पीछे प्रत्यक्ष प्रमाण सरीखे तर्क भी थे जो शीर्ष नेतृत्व की ओर से निशाने पर लिए जाने के साथ जिलों से लेकर लखनऊ तक खुला समर्थन के रूप में दिखे थे। उनके लिए अखिलेश के हाथ में सपा की बागडोर पर आयोग की मुहर लगना लंबे दंगल के बाद मंगल सूचना जैसा रहा। इसके साथ ही सड़कों पर एक बार फिर पुराना अंदाज दिखा और जोश छलका। पूरी लड़ाई के दौरान के परिदृश्य पर भी गौर करें तो दूसरी ओर निष्ठा रखने वालों ने भी कभी अखिलेश को निशाने पर नहीं लिया व चेहरे के तौर पर सिर्फ और सिर्फ उन्हें ही पसंद किया।

धड़कनें भी फुल स्पीड

अखिलेशवादी होने या दिखने के बाद भी बदली स्थितियां कई पर भारी भी पड़ेंगी। यह कई सीटों पर टिकट बदलाव के रूप में जल्द सामने भी आ जाएगा। गौर करने की बात यह कि भले अखिलेश यादव ने युवाओं के दिलों में उतर जाना और संबंध निभाना सपा सुप्रीमो से सीखा हो लेकिन इसमें छवि को बेदाग बनाए रखने के लिए दूसरी ओर की स्वच्छता का भी जरूर ध्यान होगा। इसका संकेत ऐन चुनाव से पहले ऐसे ही मुद्दों के लेकर परोक्ष रूप से ही सही पिता के खिलाफ ही जंग-ए-ऐलान से भी समझा जा सकता है। ऐसे में टिकट की नई सूची में इस पहलू का ख्याल तो होगा ही लंबे समय से रार में हुए नुकसान का भान रखते हुए जिताऊ प्रत्याशी चयन पर भी जोर होगा।


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