बाढ़ ने मिटाई दिलों की दूरियां
वाराणसी : ज्ञान प्रवाह नाले से नाव आगे बढ़ी तो भीतर की एक कालोनी में राधेश्याम अपने पड़ोसी मोहन शर्मा
वाराणसी : ज्ञान प्रवाह नाले से नाव आगे बढ़ी तो भीतर की एक कालोनी में राधेश्याम अपने पड़ोसी मोहन शर्मा की छत पर ठहाका लगाते मिले। अजीब लगा कि ऐसी बाढ़ में फंसे हैं और अंदाज होलियाना। लोगों ने बताया कि यह खुशी दो साल के बाद हुए मिलाप की है। कहां तो दोनों में ताका-ताकी न थी, आज एक थाली में निवाले तोड़ रहे हैं।
भरत मिलाप शैली वाला यह मिलन हुआ बीते सोमवार की रात, जब राधेश्याम के एक मंजिले मकान को डुबोकर गंगा मइया छत की ओर बढ़ चलीं। परिवार को तो रविवार को ही शहर के एक रिश्तेदार के यहां छोड़ आए। अब घर अगोराई कर रहे थे। इस बीच पानी चढ़ा तो सांस भी अटक गई। लेकिन, वाह रे ठसक, किसी से मदद कैसे मांगें। पहल मोहन शर्मा ने ही की। रात के सन्नाटे में गले तक पानी हेलकर राधेश्याम के यहां पहुंचे और तकरीबन गरियाते हुए उनका हाथ पकड़कर अपने घर ले आए। संवाद कुछ ऐसा था 'मनई त ठीक नाहीं हऊवा मगर डूब के मर जईबा त केकरे संगे रार करब'। इसी संवादहीनता ने दो साल से दोनों के सटे मकान के बीच चीन सी दीवार खड़ी कर दी थी। एक बार जो बात निकली तो सारे गिले-शिकवे बाढ़ के पानी में बहते चले गए। अब यही राधेश्याम पड़ोसी मोहन जी के यहां पांच दिनों से मेहमानवाजी का मजा उठा रहे हैं। ईमली का बूटा, बेरी का पेड़ वाला गीत गा रहे हैं।