राजा हरिश्चंद्र बिपत परी, सत ना छोड़े वो कभी..
वाराणसी : शनिवार को काशी की शाम खास रही..जब बरसों बाद नागरी नाटक मंडली में गूंजा नौटंकी का नक्कारा।
वाराणसी : शनिवार को काशी की शाम खास रही..जब बरसों बाद नागरी नाटक मंडली में गूंजा नौटंकी का नक्कारा। अपनी गौरवशाली सांस्कृतिक परंपरा को जीवंत रखने के लिए प्रतिबद्ध संस्था 'सोनचिरैया' के बैनर तले 'द ग्रेट गुलाब थिएटर' के कलाकारों की बेमिसाल प्रस्तुति ने लोककला प्रेमियों को बांधे रखा। उन्हें अपनी थाती को सहेजने-संजोने के लिए प्रतिबद्ध भी किया। मौका था, 'सत्यवादी राजा हरिश्चंद्र' की प्रस्तुति का।
काशी में नौटंकी का नक्कारा
लंबे समय बाद काशी की सरजमीं पर गूंजा नौटंकी का नक्कारा। यही कारण रहा कि हर उम्र के लोग नौटंकी का आनंद लेने मुरारी लाल मेहता प्रेक्षागृह पहुंचे। 'राजा हरिचंद्र पर बिपत परी, सत ना छोड़े वो कभी..' नक्कारे की टनकदार आवाज केमध्य कुछ ऐसी ही ठेठ देशी ठसक वाली संवाद अदायगियों का आनंद वर्षो बाद लोककला प्रेमियों को मिला। बनारस के रंग दर्शकों के समक्ष एक बार फिर सत्यवादी राजा हरिश्चंद्र की कथानक जीवंत हुई। खालिस नौटंकी शैली की इस प्रस्तुति का पूरा श्रेय तिनके-तिनके चुनकर लोक कलाओं की सहेज रही संस्था 'सोनचिरैया' की संस्थापक विख्यात लोकगायिका पद्मश्री मालिनी अवस्थी को मिला। संवाद, अभिनय से लेकर नक्कारा, हारमोनियम व ढोलक वादन तक में पारंगत कलाकार पूरी तरह दर्शकों के दिलों में उतर गए।
कलाकारों का अंदाज
सोनचिरैया व ओएनजीसी के तत्वावधान में द ग्रेट गुलाब थिएटर के कलाकारों का अंदाज दर्शकों को भरपूर रास आया। नौटंकी की सिरमौर रही गुलाब बाई की पुत्री मधु अग्रवाल और उनकी टीम का मंचन रात तक चला। नौटंकी प्रेम और वीर-रस पर केंद्रित रही। मंच के दृश्यों में व्यंग्य व तंज का घनघोर मिश्रण देखने को मिला। प्रस्तुति 'सत्यवादी महाराजा हरिश्चंद्र' पौराणिक कथाओं में एक सच्ची घटना पर आधारित उस राजा की कहानी रही जिसे न सिर्फ सत्यवादी की उपाधि से सराहा गया बल्कि सत्य के लिए स्वयं को, अपनी पत्नी व पुत्र को न्यौछावर करने की हिम्मत, दृढ़ता व विश्वास का सर्वोच्च उदाहरण माना जाता है।
मंडलायुक्त ने किया शुभारंभ
आरंभ में मुख्य अतिथि मंडलायुक्त नितिन रमेश गोकर्ण, केंद्र सरकार में सामाजिक न्याय व आधिकारिता मंत्रालय के सचिव अवनीश अवस्थी, साहित्यकार विद्या बिन्दु सिंह व जगदीश पीयूष सहित अन्य अतिथियों ने दीप जलाकर उत्सव का शुभारंभ किया। संचालन कर रहीं संस्था 'सोनचिरैया' की अध्यक्ष पद्मश्री मालिनी अवस्थी ने कहा कि इस कला को समुचित सम्मान व स्थान नहीं मिला। इस कारण इस प्राचीन विधा के कलाकारों का बिखराव हो गया। इस थाती के संरक्षण के लिए कला व संस्कृति की नगरी बनारस को चुना गया।
ठसाठस भरा रहा सभागार..
संस्कृति की नगरी काशी में यह नौटंकी की लोकप्रियता का ही आलम रहा कि मंडली का सभागार अंत तक ठसाठस भरा रहा। दर्शकों की फरमाइश पर 'दही वाली' का भी मंचन किया गया। गौरतलब है कि धरोहरी लोक कलाओं के संवर्धन को सोनचिरैया ने बीते साल अस्सी घाट पर अलग-अलग क्षेत्रों की लोककलाओं का सतरंगी इंद्रधनुष मंच पर उतारा था जिसे भरपूर सराहा गया था।
किसकी क्या रही भूमिका
इस प्रस्तुति में निर्देशन व तारामति की भूमिका में मधु अग्रवाल, राजा हरिचंद्र की भूमिका में मास्टर शाहिद, विश्वामित्र की भूमिका में मास्टर रईश, माली व पंडित की भूमिका में साजन कुमार, राजा इंद्र बने मास्टर फरीद, कालू बने नागेंद्र द्विवेदी रोहिताश्व की भूमिका में मास्टर रिषु, विष्णु भगवान बने मास्टर विभव, मालिन लक्ष्मी सिंह, संगीत निर्देशन सूरज कुमार, नक्कारा वादक प्रभु दयाल, हारमोनियम पर दीप कुमार, ढोलक पर विशाल, नाल वादक राजाराम, पैडवादक अंकित, स्टेज व लाइट की व्यवस्था आरसी पाठक ने की।