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शाही नाले का अब खुलेगा रहस्य

वाराणसी : काशीवासियों के लिए रहस्य बने शाही नाले से पर्दा उठने वाला है। ऐतिहासिक धरोहर को बचाने की क

By Edited By: Published: Sat, 10 Oct 2015 02:31 AM (IST)Updated: Sat, 10 Oct 2015 02:31 AM (IST)
शाही नाले का अब खुलेगा रहस्य

वाराणसी : काशीवासियों के लिए रहस्य बने शाही नाले से पर्दा उठने वाला है। ऐतिहासिक धरोहर को बचाने की कवायद शुरू हो गई है। अगले सप्ताह से नाले की सफाई का काम शुरू हो रहा है। इसके बाद सीसीटीवी कैमरे से जांच की जाएगी, ताकि मालूम हो सके कि नाले के अंदर कहां डैमेज हुआ है और उसका वास्तविक आकार क्या है। फिर नाले के भीतर की परत पर सिलिकान आधारित धातु की परत चढ़ाई जाएगी। गंगा प्रदूषण नियंत्रण इकाई की ओर से प्राथमिक सर्वे पूरा हो चुका है।

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फिलहाल इकाई की निगरानी में दिल्ली की एक कंपनी ने नाले के जीर्णोद्धार का जिम्मा लिया है। इसी कड़ी में प्राथमिक सर्वे सितंबर में किया गया था। रोबोटिक कैमरे के माध्यम से नाले की लंबाई आदि की जानकारी कर ली गई है। सर्वे के मुताबिक करीब 7.1 किलोमीटर ट्रंक लाइन है, जिसका हेड अस्सी मोहल्ला में है तो टेल कोनिया में आकर गिरता है। इसके अलावा शाही नाला से जुड़ी ब्रांच लाइनें भी हैं। जलकल विभाग में मौजूद दस्तावेज के अनुसार ट्रंक व ब्रांच लाइन मिलाकर करीब 24 किलोमीटर की सीवर सिस्टम शहर में मौजूद है।

86 करोड़ से जीर्णोद्धार

शाही नाले के जीर्णोद्धार के लिए 86 करोड़ का अनुमानित बजट है। इसमें सर्वे से मरम्मत तक शामिल है। जापान इंटरनेशनल को-आपरेशन एजेंसी (जायका) द्वारा वित्तीय व्यवस्था की जा रही है। कार्यदायी संस्था गंगा प्रदूषण नियंत्रण इकाई है। संदीप कुमार को परियोजना प्रबंधक बनाया गया है, जिनकी निगरानी में दिल्ली की कंपनी श्रीराम ईपीसी नाले का जीर्णोद्धार करेगी। कंपनी के महाप्रबंधक राजेश कुमार वाष्र्णेय ने कार्यभार संभाल लिया है। अधिकारी बताते हैं कि जीर्णोद्धार पूरा होने में दो से ढाई वर्ष लग जाएंगे।

मेट्रो को लेकर थी चिंता

वाराणसी में मेट्रो परियोजना को लेकर चिंता अधिक है। इसका रूट करीब 15 से 20 मीटर नीचे तक जाएगा। ऐसे में शाही नाला रास्ते में बाधक बन सकता है। भूमिगत विकास योजनाओं के लिए शाही नाले की पहेली को सुलझाना जरूरी हो गया है। कमिश्नर नितिन रमेश गोकर्ण ने भी इस आशय का आदेश जारी किया है।

एक बार पहले भी सर्वे

पिछले साल जायका ने कुछ कैमरों को नाले में उतारा था। मछोदरी व नगवा में रोबोटिक कैमरे की मदद से जून 2014 में कुछ तस्वीरें भी ली गई थीं। ट्रायल से मिली तस्वीरों के बाद जायका ने तय किया कि पूरे शाही नाले का सर्वे किया जाएगा।

जेम्स प्रिंसेप का सिस्टम

जेम्स प्रिंसेप ने जल निकासी के लिए शाही नाले का खाका खींचा था। लखौरी ईट और बरी मसाला से नाले का निर्माण 1927 में पूर्ण हुआ। पर्यावरण विज्ञानी बताते हैं कि नाला अस्सी, भेलूपुर, कमच्छा, गुरुबाग, गिरजाघर, बेनियाबाग, चौक, पक्का महाल, मछोदरी होते हुए कोनिया तक गया है।

'गंगा प्रदूषण नियंत्रण इकाई की निगरानी में दिल्ली की कंपनी शाही नाले के जीर्णोद्धार में लगी है। एक सप्ताह के अंदर सफाई कार्य शुरू होने की संभावना है। शाही नाले को मजबूती देने में करीब ढाई साल लग सकते हैं।'

- जेबी राय, महाप्रबंधक, गंगा प्रदूषण नियंत्रण इकाई।


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