वेद मंत्रों से तन-मन शुद्धि का अनुष्ठान
वाराणसी : श्रावण पूर्णिमा पर शनिवार को 'एकोहं बहुयस्याम्' की ब्रह्म आकांक्षा से साधु संतों ने श्रावण
वाराणसी : श्रावण पूर्णिमा पर शनिवार को 'एकोहं बहुयस्याम्' की ब्रह्म आकांक्षा से साधु संतों ने श्रावणी उपाकर्म किया। विभिन्न मठ मंदिरों व घाटों पर तन- मन शुद्धि के लिए हेमाद्रि संकल्प लिए गए। भूल-पाप प्रायश्चित की क्षमा याचना और दसविध स्नान किया। भस्म, मिट्टी, गोबर, गो-मूत्र, दूध-दही, घी- हल्दी, कुश व शहद लेप कर वेद मंत्रों के बीच गंगा में डुबकी लगाई। पितरों के नाम आहूति दी, नए यज्ञोपवीत भी धारण किया।
मणिकर्णिकाघाट स्थित सतुआबाबा आश्रम में जुटे साधु-संतों व बटुकों ने सिंधिया घाट के सामने गंगा में विधि विधान निभाए। आश्रम में सूर्यदेव आह्वान, गणपति पूजन, कलश स्थापन, शालिग्राम पूजा व सप्तर्षि के नाम षोडशोपचार अनुष्ठान किया गया। नदियों, पहाड़ों-तीर्थो का स्मरण कर पितरों का तर्पण किया और ज्ञोपवीत धारण किए। आचार्य पं. रमेश प्रसार मिश्र ने अनुष्ठान कराए। धर्मसंघ शिक्षा मंडल पीठाधीश्वर स्वामी शंकरदेव चैतन्य ब्रह्मचारी के सानिध्य में अस्सी घाट पर और आश्रम परिसर में श्रावणी उपाकर्म किया गया। महामंत्री जगजीतन पांडेय ने संयोजन किया। केंद्रीय ब्राह्मण महासभा युवा मंच व शास्त्रार्थ महाविद्यालय के तत्वावधान में अहिल्याबाई घाट आयोजन किया गया। शुक्ल यजुर्वेद, माध्यायिनी व वाजसनेही शाखा के ब्राह्मणों ने पर जाने अनजाने पापों के शमन को मां गायत्री से क्षमा याचना की। पं. विकास दीक्षित के आचार्यत्व में अनुष्ठान किए गए। पवन शुक्ल के संयोजन में आयोजित श्रावणी उपाकर्म में डा. गणेशदत्त शास्त्री, पं. चूड़ामणि शास्त्री, श्रीमहंत शिवप्रसाद पांडेय, आमोद दत्त शास्त्री, पं. गिरीश पांडेय, कमलाकांत उपाध्याय, आलोक मालवीय आदि थे। राजस्थान ब्राह्मण मंडल की सारस्वत युवा सभा ने मीरघाट पर आचार्य उपेंद्र मोहले के नेतृत्व में अनुष्ठान किया। अध्यात्म न्याय समिति व साम्राज्येश्वर पशुपतिनाथ ट्रस्ट ने ललिता घाट पर श्रावणी उपाकर्म किया। काशी आर्य समाज की बुलानाला इकाई में भी श्रावणी उपाकर्म किया गया।
पातालपुरी मठ में उपनयन संस्कार
वाराणसी : ईश्वरगंगी स्थित पातालपुरी मठ में सावन पूर्णिमा पर परंपरानुसार 21 ब्राह्मणों का उपनयन संस्कार किया गया। पीठाधीश्वर बालकदास महाराज के सानिध्य में प्रात: आठ बजे अनुष्ठान शुरू किए गए। मुंडन, सूर्य आराधन, पंचगव्य स्नान के बाद पांच आचार्यो ने यज्ञोपवीन धारण कराया। मंत्रों के बीच हवन कुंड में आहुति दी गई।