कितने कछुए, पता ही नहीं
वाराणसी : करीब 20 वर्ष पूर्व राजघाट से रामनगर के बीच गंगा में कछुआ सेंचुरी का क्षेत्र निर्धारण हुआ।
वाराणसी : करीब 20 वर्ष पूर्व राजघाट से रामनगर के बीच गंगा में कछुआ सेंचुरी का क्षेत्र निर्धारण हुआ। उसी वक्त सारनाथ में कछुआ प्रजनन केंद्र भी स्थापित हुआ। तब से अब तक न जाने कितने कछुए गंगा के इस क्षेत्र में छोड़े गए, बावजूद इसके सेंचुरी में कितने कछुए हैं यह विभाग को भी नहीं मालूम। जबकि, इन्हीं मांसाहारी कछुओं के माध्यम से गंगा के सड़े गले मांस व शवों के अवशेष को साफ करने की कवायद होनी थी।
केंद्र के प्रभारी रेंजर शरद कुमार सिंह बताते हैं कि तीन वर्षो में करीब 4000 कछुए सेंचुरी क्षेत्र में छोड़े गए। साथ ही यह भी कहते हैं कि वाकई हमें नहीं मालूम कि उसमें से कितने अभी मौजूद हैं। इसका पता लगाने के लिए कछुओं की गणना करना जरुरी है जिसके लिए छह माह पूर्व प्रस्ताव भेजा गया था जिसे अब तक संस्तुति नहीं मिली है। फिलवक्त केंद्र में 1897 कछुए पल-बढ़ रहे हैं। साथ ही 350 अंडों की हेच¨रग की जा रही है। कछुओं का अंडा चंबल नदी के किनारे से लाया जाता है। एक वर्ष में करीब 500 ऐसे कछुए तस्करों से बरामद किया गया।
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एक पहलू यह भी
सरीसृप वर्ग का प्राणी कछुआ अपने शांत स्वभाव, मंद गति और सुस्ती के लिए जाना जाता है। विलंबित किसी भी विकास कार्य के लिए 'कछुआ चाल' तो सटीक मुहावरा ही हो गया है। चाइनीज वास्तुशास्त्र फेंगशुई के अनुसार घर में कछुआ रखने से सकारात्मक ऊर्जा मिलती है। सनातन धर्म की मान्यता के मुताबिक कछुआ भगवान विष्णु का दूसरा अवतार था। पद्मपुराण के अनुसार कच्छप अवतार में श्रीहरि ने समुद्र मंथन में अहम भूमिका निभाई थी।