फोटो टूरिज्म की भी तीर्थ हुई काशी
राकेश पाण्डेय, वाराणसी : इतिहास से भी पुरानी काशी में गंगा की लहरें हैं, 84 घाटों की श्रृंखला है, मो
राकेश पाण्डेय, वाराणसी : इतिहास से भी पुरानी काशी में गंगा की लहरें हैं, 84 घाटों की श्रृंखला है, मोक्ष की महत्ता भी व कला और संगीत की पराकाष्ठा भी। बदलते दौर में अब यह काशी खुद प्रधानमंत्री का संसदीय क्षेत्र भी हो गई है तो दुनिया मानो यहां खिंची चली आ रही है। ऐसे ही आकर्षण में बंधी यहां पहुंचीं इंग्लैंड की मशहूर मां-बेटी फोटोग्राफर। तीन दिनों तक बनारस की घाट-गलियों को कैमरे में कैद किया और शुक्रवार को दिल्ली के लिए रवाना हो गई। खुद उन्हीं के शब्दों में कहें तो बनारस फोटो टूरिज्म के लिए सबसे मुफीद शहर है। एक ऐसा शहर जहां पूरी जिंदगी फोटो खींचते रहिए ..तब भी सब कुछ कैमरे में समेट लेने का दावा नहीं किया जा सकता।
डेजी वाल्कर इंग्लैंड में फोटोग्राफी के क्षेत्र में जाना-माना नाम है। वह फैशन डिजाइन के लिए फोटोग्राफी करती हैं। इसके अलावा मैगजीन व न्यूज पेपर के लिए फोटोग्राफी की फ्रीलांसिंग भी करती हैं। उनकी मां करेन जेनी वाल्कर दशकों से स्ट्रीट फोटोग्राफी कर रही हैं। इंटरनेट की दुनिया आई तो उन्होने ऑनलाइन फोटोग्राफी में खुद को मशहूर किया। पिछले दिनों यूरोपियन स्ट्रीट हंटर्स की ओर से होने वाली ऑनलाइन स्ट्रीट फोटोग्राफी प्रतियोगिता का परिणाम आया तो बनारस के मनीष खत्री ने उसमें 72 देशों के प्रतिभागियों के बीच दूसरे नंबर पर मुकाम पाया। इन दिनों भारत आई करेन ने मनीष की तस्वीरों को देखा तो अपनी बेटी डेजी से चर्चा की। बिना किसी पूर्व योजना के दोनों ने बनारस की ओर रुख किया। मनीष से संपर्क कर 15 अप्रैल को यहां पहुंचीं व इसके बाद तीन दिनों तक सुबह से लेकर रात तक जैसे फोटोग्राफी की एक धुन लिए मां-बेटी शहर में गंगा किनारे, घाटों पर, गलियों में कैमरे में तस्वीरें कैद करती रहीं। इंग्लैंड के इन फोटोग्राफरों को फोटो टूरिज्म कराने वाले गाइड बने मनीष खत्री और विनय त्रिपाठी। बताते हैं कि फोटोग्राफी के दौरान करेन जहां एक-एक मूवमेंट को कैद करने में जुटी थीं वहीं बेटी डेजी चुनिंदा सब्जेक्ट को मानों मन ही मन अनुसंधान करते हुए ऐंगिल बनाते हुए शूट करने में तल्लीन रहीं। दोनों का कहना था कि आप दुनिया में कहीं भी चले जाइए, फोटोग्राफी के लिए इतनी विविधता कहीं नहीं मिलेगी जितनी उन्हें बनारस में दिखती है। अन्य जगहों पर लोगों के चेहरे पर 'एक्सप्रेशन' नहीं मिलते जबकि बनारस में मस्त-फक्कड़ जिंदगी जीने वाले हर इंसान के चेहरे पर स्वाभाविक संवेदनशीलता दिखी।