संस्कृत व कंप्यूटर को जोड़कर बनाएं नया पाठ्यक्रम
वाराणसी : संस्कृत विश्व की सभी भाषाओं की जननी है। इसे राष्ट्रभाषा का दर्जा प्राप्त होना चाहिए। यदि ह
वाराणसी : संस्कृत विश्व की सभी भाषाओं की जननी है। इसे राष्ट्रभाषा का दर्जा प्राप्त होना चाहिए। यदि हम संस्कृत को कंप्यूटर की भाषा बनाएं तो केवल भारतीय ही नहीं, अपितु एशिया की अनेक भाषाओं के उपयोग में भी सफलता मिल सकती है। ऐसे में संस्कृत व कंप्यूटर को जोड़कर नया पाठ्यक्रम बनाने की जरूरत है। इसे प्रारंभिक कक्षाओं से पढ़ाया जाना चाहिए।
यह सुझाव सुप्रसिद्ध कंप्यूटर वैज्ञानिक पद्मश्री डा.विजय पांडुरंग भटकर के हैं। वे शनिवार को संपूर्णानंद संस्कृत विश्वविद्यालय के 32वें दीक्षांत समारोह को मुख्य अतिथि पद से संबोधित कर रहे थे। अपने दीक्षांत भाषण में उन्होंने कहा कि कंप्यूटर के लिए सबसे उपयुक्त भाषा संस्कृत है। संस्कृत आधारित ध्वनि स्तरों के प्रयोग से ही भारतीय भाषाओं की लिपियों का प्रयोग किया गया। बाद में देवनागरी वर्णमाला को न केवल कंप्यूटर अपितु मोबाइल फोन के लघु की-बोर्ड में हुआ। अमेरिकन नासा वैज्ञानिक रिक ब्रिग्स भी संस्कृत भाषा की महत्ता स्वीकार कर चुके हैं। वर्ष 1990 में पहली बार संस्कृत व कंप्यूटर पर शोध कार्य शुरू हुआ। इस दिशा में वृहद व गहन शोध की आवश्यकता है। उन्होंने सवाल उठाया कि हम संस्कृत, विज्ञान, कंप्यूटर विज्ञान, अंग्रेजी के साथ बीएससी (कंप्यूटर साइंस) पाठ्यक्रम के रूप में क्यों नहीं प्रारंभ कर सकते। कहा कि सेंटर फॉर डेवलपमेंट ऑफ एडवांस कंप्यूटिंग, आइआइटी बीएचयू व संस्कृत विश्वविद्यालय को इस विशिष्ट अभियान के तहत परियोजना प्रारंभ कर संस्कृत को जोड़ने का प्रयास करना चाहिए, तभी संस्कृत कंप्यूटर की वरीयता युक्त प्रोग्रामिंग भाषा के रूप से स्थापित हो सकेगी, तब पूरी दुनिया संस्कृत पढ़ेगी और भारत पुन: विश्वगुरु की संज्ञा प्राप्त करेगा। कहा कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी 21वीं सदी में भारत को विश्व गुरु बनाने के लिए कृत संकल्प है। इस संकल्प को साकार करने के लिए आगे आने की जरूरत है।