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विध्वंसक नहीं, सृजनात्मक रखें दृष्टिकोण

वाराणसी : राज्यपाल व कुलाधिपति राम नाईक ने कहा है कि महाशक्ति बनने के लिए विध्वंसक नहीं, सृजनात्मक

By Edited By: Published: Fri, 19 Dec 2014 07:47 PM (IST)Updated: Fri, 19 Dec 2014 07:47 PM (IST)
विध्वंसक नहीं, सृजनात्मक रखें दृष्टिकोण

वाराणसी : राज्यपाल व कुलाधिपति राम नाईक ने कहा है कि महाशक्ति बनने के लिए विध्वंसक नहीं, सृजनात्मक दृष्टिकोण रखना जरूरी है। भारत को पुन: विश्व गुरु बनाने के लिए सबको कठोर परिश्रम करना होगा।

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राज्यपाल, शुक्रवार को संपूर्णानंद संस्कृत विश्वविद्यालय के 32वें दीक्षांत समारोह की अध्यक्षता कर रहे थे। उन्होंने कहा कि विद्यार्थी जीवन कभी समाप्त नहीं होता। उपाधि लेने के बाद आप खुले आकाश में जाएंगे, जहा कड़ी प्रतिस्पर्धा है। ऐसे में अब आपको नई स्पर्धा की तैयारी करनी होगी। एक समय था जब नालंदा, तक्षशिला व उज्जैन में लोग विदेशों से पढ़ने आते थे। उस समय पर्याप्त संसाधन भी नहीं था। आज देश में शिक्षा का विस्तार हुआ है। देश में करीब 700 विश्वविद्यालयों व 35000 महाविद्यालयों में करीब दो करोड़ विद्यार्थी अध्ययनरत हैं। दिल में पीड़ा है कि हम दुनिया के 200 शिक्षण संस्थाओं में भी स्थान नहीं बना पा रहे हैं। इस पर गंभीरता से विचार करने की जरूरत है।

राज्यपाल ने कहा कि चार माह पहले मैंने राज्यपाल व कुलाधिपति का कार्यभार ग्रहण किया। सभी विश्वविद्यालयों को प्रवेश, परीक्षा, रिजल्ट व दीक्षांत समय से कराने के निर्देश दिए जा चुके हैं। सूबे के 24 विश्वविद्यालयों में तीन नए को छोड़ कर सभी से 31 जनवरी तक अनिवार्य रूप से दीक्षांत समारोह कराने को कहा गया है। अब तक नौ विश्वविद्यालय दीक्षांत समारोह करा चुके हैं। राज्यपाल ने विद्यार्थियों को क्षण-क्षण बचाकर विद्या व कण-कण बचाकर धर्म अर्जन करने की प्रवृत्ति विकसित करने की सीख दी।

मुख्य अतिथि सुप्रसिद्ध कंप्यूटर वैज्ञानिक पद्मश्री डा. विजय पांडुरंग भटकर थे। इस दौरान कुलाधिपति ने 28 मेधावियों को 51 स्वर्ण, रजत व कांस्य पदक प्रदान किए जिसमें सर्वाधिक नौ पदक स्वामी राममुनि को मिले। इसके अलावा 30623 विद्यार्थियों को शास्त्री, आचार्य, पीएचडी सहित अन्य उपाधि प्रदान की गई। समारोह में महापौर रामगोपाल मोहले सहित अन्य गणमान्य लोग उपस्थित थे। स्वागत कुलपति पृथ्वीश नाग, संचालन प्रो. रजनीश शुक्ला व धन्यवाद कुलसचिव वीके सिन्हा ने किया।

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राज्यपाल ने दोहराए चार मंत्र

-जीवन में आगे बढ़ना है तो हंसमुख बनें

-छोटा हो या बड़ा, जो अच्छा करें उसके गुणों को करें ग्रहण।

-न करें अहम, दूसरों की भावनाओं को न पहुंचाएं ठेस।

-जो भी कार्य करें, उसे और अच्छा करने का करते रहें प्रयास।


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