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स्वच्छता अभियान कहां फेंके कूड़ा, जगह ही नहीं

वाराणसी : शहरवासियों की सबसे बड़ी समस्या है कि घर का कूड़ा कहां फेंके। कहीं भी जगह निर्धारित नहीं है।

By Edited By: Published: Sat, 01 Nov 2014 02:34 AM (IST)Updated: Sat, 01 Nov 2014 02:34 AM (IST)
स्वच्छता अभियान कहां फेंके कूड़ा, जगह ही नहीं

वाराणसी : शहरवासियों की सबसे बड़ी समस्या है कि घर का कूड़ा कहां फेंके। कहीं भी जगह निर्धारित नहीं है। मुहल्लों के बाद कंटेनर भी नहीं रखे गए हैं जहां पर घरों से कूड़ा निकाल कर फेंका जा सके। डोर-टू-डोर उठान नहीं होने से यह समस्या बढ़ी है। मुहल्लों व कालोनियों की गलियों व सड़कों पर कचरा पसरा रहता है।

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खास यह कि नगर निगम के पास कूड़ा प्रबंधन का कोई रोड मैप नहीं है। इसका खुलासा 28 अक्टूबर को आए केंद्रीय शहरी विकास मंत्रालय के संयुक्त सचिव प्रवीण प्रकाश के समक्ष हुआ जब उन्होंने इस बाबत जानकारी मांगी। नगर निगम के अधिकारियों ने रोड मैप बताने में असमर्थता जाहिर की।

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प्रत्येक वार्ड में पांच कंटेनर

फिर भी कूड़ा प्रबंधन के जानकार बताते हैं कि बनारस में एक वार्ड के लिए कम से कम पांच कंटेनर होना चाहिए ताकि सुबह सफाई कर्मी लोगों के घरों व गलियों के मुहाने पर रखे कूड़े को उसमें लगाकर डाल सके। जहां से कूड़ा गाड़ी से उसे निस्तारित किया जा सके। दुकानों के सामने भी डस्टबिन रखने का आदेश है।

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कूड़ा घरों के लिए जगह नहीं

नगर में कुल 25 कूड़ा घर हैं। इसमें दो ओपेन कूड़ा घर हैं। शहर के विस्तार के सापेक्ष यह अपर्याप्त है। इसे देखते हुए नगर निगम ने पांच और कूड़ा घर बनाने का प्रस्ताव बनाया है लेकिन जगह नहीं मिल रही। मानसिक चिकित्सालय के पास प्रस्तावित कूड़ा घर बनाने की कोशिश हुई तो बिजली विभाग ने ही विरोध कर दिया।

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चार साल पहले आई एटूजेड

जेएनएनयूआरएम के तहत सालिड वेस्ट मैनेजमेंट के लिए 48 करोड़ रुपये दिए गए। इसमें से काफी बजट खर्च भी हो चुका है। वर्ष 2011 में एटूजेड ने शहर में कदम रखा। डोर-टू-डोर उठान शुरू किया। करसड़ा में पीपीपी माडल के तहत सालिड वेस्ट प्रोसेसिंग प्लांट लगाया गया। मशीन लगाई गई। री-साइकलिंग का कुछ कार्य भी शुरू हुआ लेकिन पूरी क्षमता से प्लांट काम नहीं किया। न तो खाद बनी और न ही बिजली उत्पादन हुआ जबकि कंपनी संग नगर निगम के बीच हुए अनुबंध में यह शर्ते जुड़ी थीं।

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बकाया भुगतान को लेकर जिच

बकाया भुगतान को लेकर एटूजेड कंपनी ने अगस्त वर्ष 2012 में बकाया भुगतान को लेकर जिच शुरू किया। नगर निगम को बिना बताए शहर को कूड़े के हवाले कर अपना पल्ला झाड़ लिया। इस बीच फिर से प्रयास हुआ तो एटूजेड कंपनी ने वर्ष 2013 में दोबारा डोर-टू-डोर कूड़ा उठान शुरू की लेकिन नगर निगम संग कपंनी की बात नहीं बनी और फिर वह भाग गई।

मामला शासन स्तर पर लटका

एटूजेड का मामला शासन स्तर पर लटक गया है। प्रदेश के नगरीय विकास मंत्री आजम खां ने कंपनी को धोखेबाज भी बताया लेकिन अभी तक इस मसले पर कोई निर्णय नहीं हुआ। निगम अधिकारियों की मानें तो कंपनी ने करसड़ा प्लांट चलाने में आनाकानी की। वहीं संसाधनों की खरीद में भी धांधली। अभी तक पूरे संसाधन भी कंपनी ने नगर निगम को हैंडओवर नहीं किया है।

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एक नजर में कूड़ा प्रबंधन

- जनसंख्या : 19 लाख से अधिक

- कूड़ा की निकासी : 600 मीट्रिक टन प्रतिदिन

- कूड़ा घर : 23 बंद, दो ओपेन

- दो सौ कंटेनर

- कूड़ा उठान : सुबह व रात के वक्त

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निगम के पास संसाधन

- 27 सौ सफाईकर्मी

- जेसीबी : सात में एक खराब

- डंफर : 18

- डंफर क्रेसर : 9

- टैंकर : पांच नया, 12 पुराना

- हॉपर : 11

- छोटा हॉपर (टाटा एस) : 32

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डोर-टू-डोर उठान की कवायद

हां यह सही है कि शहरवासियों को कूड़ा निस्तारित करने की समस्या है। इस दिशा में ठोस प्रयास हो रहा है। जल्द ही रास्ता निकलेगा और फिर से डोर-टू-डोर कूड़ा उठान शुरू होगा। एटूजेड कंपनी का मसला हल कर नये सिरे से कार्ययोजना बनेगी।

रामगोपाल मोहले, महापौर

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करसड़ा प्लांट चलाना जरूरी

नगर निगम के पास उपलब्ध संसाधनों से कूड़ा निस्तारित किया जा रहा है लेकिन समस्या बड़ी है। जब तक करसड़ा प्लांट संचालित नहीं होता। बात नहीं बनेगी। इस दिशा में तेजी से प्रयास हो रहा है। समाधान की उम्मीद भी जगी है।

उमाकांत त्रिपाठी, नगर आयुक्त


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