कार्यालय अधीक्षक ने लगाई फांसी
वाराणसी : डीरेका परिसर से सटे जलालीपट्टी निवासी शैलेन्द्र चतुर्वेदी ने बुधवार की सुबह दुपट्टे के सहा
वाराणसी : डीरेका परिसर से सटे जलालीपट्टी निवासी शैलेन्द्र चतुर्वेदी ने बुधवार की सुबह दुपट्टे के सहारे फांसी लगाकर अपनी जान दे दी। शैलेन्द्र, डीजल रेल कारखाना (डीरेका) में कार्मिक विभाग के कार्यालय अधीक्षक थे। शैलेंद्र ने यह आत्मघाती कदम एक फोन कॉल आने के बाद उठाया। सूचना पर पहुंची पुलिस ने शव को पोस्टमार्टम के लिए भेजने के बाद शैलेंद्र का मोबाइल अपने कब्जे में ले लिया है ताकि पता चल सके कि उनकी अंतिम बार किससे बात हुई थी। मोबाइल की काल्स डिटेल्स से पता चलेगा कि बातचीत के दौरान ऐसा क्या हुआ कि कार्यालय अधीक्षक ने फांसी लगा ली।
बलिया जिले के सहतवार गांव के मूल निवासी तीस वर्षीय शैलेंद्र के पिता गजाधर चौबे की छह साल पहले मृत्यु हो गई थी। चार भाइयों में तीसरे नंबर के शैलेंद्र को उनके स्थान पर वर्ष 2008 में नौकरी मिली थी। बुधवार को शैलेंद्र आफिस जाने के लिए तैयार हुए और रोज की भांति दो साल की बेटी पीहू बाइक पर आ गई। बाइक से मुहल्ले का एक चक्कर लगाने के बाद पीहू को घर छोड़ने आए। बेटी को पत्नी के हवाले कर आफिस के लिए निकलने की तैयारी कर रहे थे कि मोबाइल पर किसी का फोन आया। बातचीत के दौरान शैलेंद्र काफी तनाव में आ गए। गुस्से में बातचीत होते देख एक बारगी पत्नी और बेटी भी सहम गई।
बात समाप्त होने पर पत्नी रेखा ने थोड़ी देर आराम कर लेने ..और उसके बाद दफ्तर जाने को कहा। शैलेंद्र अपने कमरे में चले गए और पत्नी घर के काम में लग गई। लगभग ग्यारह बजे रेखा अपने पति को आफिस भेजने के लिए उनके कमरे में पहुंचीं तो दरवाजा बंद था। खिड़की से झांका तो चीख निकल गई। पति पंखे से दुपट्टे के सहारे लटक रहे थे। शोर सुनकर पड़ोसी पहुंचे और खिड़की का शीशा तोड़ा। इस बीच शैलेंद्र का भाई पंकज भी आ गया और उसने पड़ोसियों की मदद से ने पहले दरवाजा खोला फिर शव को नीचे उतारा।
कुछ तो गड़बड़ है : कर्मचारियों, मित्रों व पड़ोसियों के बीच शैलेन्द्र काफी खुशमिजाज इंसान के रूप में जाने जाते थे। शैलेंद्र द्वारा आत्महत्या करने की खबर जिसने सुनी, वह अवाक रह गया। एक माह के भीतर कार्मिक विभाग में दो लोगों की मौत के बाद से कर्मियों व अफसरों के बीच चर्चाओं का बाजार गरम है। इसके पहले इसी विभाग के मुख्य कार्यालय अधीक्षक ज्योति भूषण भारती की रहस्यमय परिस्थितियों में तीन अक्टूबर को ट्रेन की चपेट में आने से मौत हो गई। वह रोज सुबह टहलने निकलते थे, इसके बाद भी उनका सड़क छोड़कर लगभग चालीस मीटर दूर रेल ट्रैक पर जाना और ट्रेन की चपेट में आना शक पैदा करता है। दबी जुबान से कई लोगों का कहना है कि वह भी किसी बात को लेकर तनाव में थे और दबाव में आकर आत्महत्या की थी।