रंग से ही बदरंग हो रहे गंगा के पक्के घाट
जागरण संवाददाता, वाराणसी : आइए देखते हैं भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण की कार्यशैली। इस विभाग को धरोह
जागरण संवाददाता, वाराणसी : आइए देखते हैं भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण की कार्यशैली। इस विभाग को धरोहरों के पुरातत्व का खास ख्याल रखना है। वैज्ञानिक दक्षता और पुरातात्विक तकनीकों का इस्तेमाल करते हुए थातियों की मौलिकता पर ग्रहण लगने से बचाना है। बावजूद इसके, इस विभाग का अजब हाल-गजब कार्यशैली, देश-विदेश से गंगा के विश्वविख्यात पक्के घाटों को निहारने के लिए आने वाले सैलानियों को अब बेतरह खटक रही है। आइए, पूरा माजरा समझने के लिए चलते हैं गंगा तीरे।
मानमंदिर घाट पर महाराज जय सिंह की वेधशाला, मान महल है। विश्व प्रसिद्ध इस वेधशाला का ग्रह-नक्षत्र के अध्ययन में अपना ऐतिहासिक महत्व है। इन दिनों वेधशाला का गंगा की ओर का हिस्सा रंगा जा रहा है। पत्थरों के ऊपर हल्के पीले रंग की परत चढ़ाई जा रही है। सैंड स्टोन का प्रयोग कर बनाए गए करीब 84 घाटों की श्रृंखला का अपनी अलग ही ऐतिहासिक और पुरातात्विक भव्यता है। नदी के तट पर इतनी लंबी पक्की श्रृंखला दुनिया में कहीं नहीं है, इस वजह से हर वर्ष लाखों लोग पक्के घाटों को देखने काशी आते हैं। इन सभी महत्ता को दरकिनार कर पुरातत्व सर्वेक्षण, वेधशाला के पत्थरों वाली दीवार को रंग रहा है।
हालांकि इस विभागीय कवायद को उचित ठहराते हुए पुरातत्व अधीक्षण अजय श्रीवास्तव का कहना है कि वेधशाला का पहली बार रंग-रोगन नहीं हो रहा। इससे पूर्व वर्ष 1999 व 2008 में भी रंगाई पुताई हो चुकी है। चूंकि वेधशाला की दीवारें बरी और चूने की बनी हैं इसलिए उन्हें रंगा जा रहा है। साथ ही साथ वेधशाला के संरक्षण का भी कार्य चल रहा है।
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जिलाधिकारी ने की आपत्ति
इस मामले पर बुधवार को जिलाधिकारी प्रांजल यादव ने संज्ञान लेते हुए आपत्ति की। उन्होंने माना कि पुरातत्व सर्वेक्षण जिस तरह से रंग-रोगन करा रहा है, वह अनुचित है। इस बात पर वह भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण के दिल्ली स्थित मुख्यालय में आपत्ति दर्ज कराएंगे, साथ ही शीघ्र काशी आ रहे विभाग के निदेशक का भी ध्यान इस तरफ दिलाएंगे।
जो किया जाना चाहिए : जिलाधिकारी के अनुसार निर्णय यह लिया गया है कि घाटों को एक रंग में रंगने के क्रम में सभी पर सैंड स्टोन कलर का ही प्रयोग किया जाएगा। इससे सभी घाट एकरूप दिखेंगे और उनकी मौलिकता भी बनी रहेगी।