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तंत्र को कोसा लेकिन लोकतंत्र पर भरोसा

By Edited By: Published: Sun, 14 Sep 2014 01:24 AM (IST)Updated: Sun, 14 Sep 2014 01:24 AM (IST)
तंत्र को कोसा लेकिन लोकतंत्र पर भरोसा

वाराणसी : साल दर साल चुनाव, दिक्कतों दुश्वारियों से उबरने को कभी इस तो कभी उस हाथ नाव। इसके बाद भी मुश्किलों से पार पाना तो दूर जख्म भरते ही नहीं, वरन उभर आते हैं नए घाव। टीस, गढ्डेदार और कीचड़ से सनी सड़कों के न सुधरने की तो नालियों कासीमोल्लंघन कर बहती नालियों से गुजरने की।

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खीझ, बेबसी और चेहरे पर उभर आते ऐसे ही भाव दबाए धीरे-धीरे ही सही मतदाता घरों से निकले और बूथों तक आए। सुबह से ही सजी संवरी महिलाओं का जत्था गांव की पगडंडियों पर उतर आया। युवाओं को भी यह दायित्व रास आया। ईवीएम का बटन दबाया, लोकतंत्र महापर्व मनाया। यह लोकतंत्र के प्रति सम्मान ही था जो उन्हें यहां तक खींच ले आया। इस मिशन में अब अरमान न थे, बेवफा हो चुकी राजनीति पर अहसान ही जताया। तंत्र को कोसा लेकिन लोकतंत्र पर भरोसा दिखाया। इसका ही परिणाम रहा कि शाम तक नतीजा 53 फीसद से अधिक आंकडे़ के रूप में सामने आया।

रोहनिया का दाउदपुर व दरेखू प्राथमिक विद्यालय, गंगापुर का परिषदीय विद्यालय या हो नैपुराकला और सूजाबाद का स्कूल। इनमें बने बूथ तक जाने के कीचड़ भरे रास्तों ने आज भाग्य विधाता के रूप में आए अभिभावकों को बच्चों की बरसाती दिक्कतों से रूबरू कराया और उनके अपने ही भाग्य पर खून के आंसू रूलाया। सूजाबाद, डोमरी की राह या अन्य गांवों -कस्बों में फिसलन भरे रास्तों से गुजरते निकल जाती आह याद थी उन्हें लेकिन शहीदों के रक्त से सींची विधायिका के फलने फूलने की मन में चाह थी।

इसका ही तो असर रहा कि गंगापुर में युवा विपिन सिंह को लिस्ट में महज फोटो पलट जाने से वोट न दे पाने का मलाल था। सूजाबाद में ट्राइसाइकिल से वोट देने आया शेरू वोट देकर निहाल था। बच्ची को गोद में उठाए पहली बार वोट देने जाती राखी का चेहरा खुशी से लाल था। पैरों से असहाय दिलीप हाथों के सहारे खिसकते, मुंह में पहचान पत्र दबाए वोट देने आए। अस्पताल से डिस्चार्ज होते ही कुसुमलता को बूथ ही पता था। ऐसे भी तमाम जिनके बरसात के बाद भी कदम नहीं डगमगाए। इसका राज डोमरी की बुजुर्ग रामदेई की खरी खरी से सामने आया। बटन तो दबाया लेकिन मन का गुस्सा भी लावे की तरह शब्दों में बह आया। नेताओं को लानत भेजी और कर्म तक ही अपना अधिकार बताया। कोरौता में खड़े युवाओं ने दलगत डिवोशन के कारण ही सही एक दूसरे को टोपी ओढ़ाया लेकिन निरंतर ठगते जाने का भाव तो उमड़ ही आया।


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