त्रिकोणीय संघर्ष की ओर चली रोहनिया की सीट
वाराणसी : चार प्रमुख प्रत्याशियों के बीच चल रही रोहनिया की सियासी जंग ऐन मतदान के दिन तीन दलों के बीच सिमट गई। चुनाव है लिहाजा मतगणना के पूर्व खम ठोंककर कुछ नहीं कहा जा सकता मगर जागरण टीम के रोहनिया विधानसभा क्षेत्र में सघन भ्रमण के दौरान अधिकांश बूथों पर भारतीय जनता पार्टी-अपना दल गठबंधन, समाजवादी पार्टी व बहुजन समाज पार्टी समर्थित प्रत्याशी के बीच सियासी जंग देखने को मिली। बेशक, कुछ बूथों पर कांग्रेस प्रत्याशी की भी हनक दिखी मगर इवीएम पर कांग्रेस का कितना जादू चला होगा, यूपी में आज के परिपेक्ष्य में समझना कुछ खास मुश्किल नहीं है।
कुल 3,64,519 मतदाताओं वाले रोहनिया विधानसभा क्षेत्र में पटेल मतदाता करीब 80 हजार हैं। उन्हें ही रिझाने के लिए यहां से सपा ने महेंद्र पटेल, भाजपा-अद ने कृष्णा पटेल व कांग्रेस ने भावना पटेल को मैदान में उतारा। यहां भूमिहार मतदाता 35 हजार, यादव व राजभर मतदाता 30-30 हजार व मुस्लिम मतदाता करीब 35 हजार हैं। सवर्ण मतदाताओं की संख्या भी करीब 25 हजार मानी जाती है। बसपा ने यहां से कोई प्रत्याशी न खड़ा करते हुए अपना समर्थन दे दिया रमाकांत सिंह उर्फ मिंटू को।
यह विधानसभा क्षेत्र वाराणसी संसदीय में है लिहाजा स्थानीय सांसद नरेंद्र मोदी की भाजपा ने इसे प्रतिष्ठा का प्रश्न बनाए रखा। उसके कई केंद्रीय मंत्रियों समेत तमाम नामचीन पदाधिकारियों ने यहां दस्तक दी। दूसरी ओर लोकसभा चुनाव में करारी हार के बाद उत्तर प्रदेश में ताकत दिखाने को बेचैन सपा ने अपने कई मंत्रियों को प्रचार मैदान में उतार दिया। साख के सवाल पर दोनों ही दलों के इस सीट पर अपने अपने दावे हैं मगर हकीकत यह है कि मतदान के दिन भी अद व सपा प्रत्याशी में से कोई भी अपने पक्ष में पटेल मतदाताओं का फीसद 40 के ऊपर नहीं पहुंचा सका, दोनों दलों ने माना कि इतने पटेल मतदाता तो उनके साथ हैं ही। इन दोनों की लड़ाई में बसपा समर्थित प्रत्याशी की दमदार मौजूदगी ने इस पूरे संघर्ष को दरअसल त्रिकोणीय बना दिया है।
वैसे, रोहनिया के उपचुनाव में इस बार सियासत का कारवां दो नदियों के बीच से होकर गुजरा। भाजपा-अद गठबंधन ने जहां प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की नमामि गंगा परियोजना को जमकर कैश कराया, वहीं सपा ने वरुणा कारीडोर का मसला शिद्दत से उछाला। दोनों ही दलों ने काशी में बहने वाली इन नदियों के उद्धार के नाम पर मतदाताओं से वोट मांगे। दोनों ही दल जानते थे कि गंगा, धरा के साथ-साथ जहां लोगों के दिलों में भी प्रवाहित है वहीं वरुणा का वाराणसी से नाम-काम का नाता है, दोनों ही नदियों की अपनी व्यावसायिक व कृषि पूर्तियां हैं ..और दोनों ही नदियों को उद्धार की जरूरत है। यह मतदाताओं को संवेदना के मोर्चे पर झकझोरने का प्रयास था। क्योटो बनाम काशी का मसला भी उछला। भाजपा-अद ने इसे जहां ऐतिहासिक बताते हुए रोहनिया तक के उद्धार का पूरा खाका खींच दिया वहीं सपा ने इसे बताया हवाई किला। अब अपने प्रयास में कौन दल कितना कामयाब हुआ, पता चलेगा मंगलवार को गणना में।
मतदान बीत गया, लिहाजा एक चर्चा बस यूं ही : आइए देखें, रोहनिया के परिपेक्ष्य में बनते बिगड़ते संबंधों की रोचक यात्रा। इन दिनों सूबे में पीडब्ल्यूडी समेत कई विभागों के राज्यमंत्री सुरेंद्र पटेल ने जब सन 2002 में पहली बार विधानसभा में प्रवेश किया तब वो विधायक थे उसी अपना दल के, सोनेलाल पटेल जिसके संस्थापक हुआ करते थे। सुरेंद्र पटेल को करीब 18000 मतों के अंतर से यह जीत पटेल बाहुल्य उसी गंगापुर विस क्षेत्र में मिली, परिसीमन के बाद जिसे आज रोहनिया सीट कहते हैं।
बीते विधानसभा चुनाव में रोहनिया सीट से विधायक चुनी गई वो अनुप्रिया पटेल, जो अपना दल संस्थापक सोनेलाल पटेल की पुत्री हैं। दो वर्ष बाद सन 2014 में अनुप्रिया पटेल ने भाजपा का समर्थन लेते हुए मीरजापुर संसदीय से चुनाव लड़ा, जीतीं, विधानसभा सीट खाली की ..और इस तरह रोहनिया हवाले हो गया उपचुनाव के। इस उपचुनाव में सपा के प्रत्याशी हैं महेंद्र पटेल। महेंद्र पटेल सगे भाई हैं राज्यमंत्री सुरेंद्र पटेल के। ..और उनके सामने प्रतिद्वंद्वी के रूप में मौजूद रहीं कृष्णा पटेल ..वही कृष्णा पटेल जो कि अपना दल के संस्थापक सोनेलाल पटेल की पत्नी हैं, अद की राष्ट्रीय अध्यक्ष भी। दुनिया गोल है, हो गया न चक्कर पूरा!