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लोक भाषाओं का महत्व समझें

By Edited By: Published: Sat, 30 Aug 2014 08:22 PM (IST)Updated: Sat, 30 Aug 2014 08:22 PM (IST)
लोक भाषाओं का महत्व समझें

वाराणसी : उत्तर प्रदेश भाषा संस्थान की ओर से मैदागिन स्थित पराड़कर भवन में आयोजित संगोष्ठी में वक्ताओं ने खुलकर हिंदी व लोकभाषा भोजपुरी की वकालत की। लोक भाषाओं के महत्व को समझने का आह्वान किया।

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बीएचयू स्थित हिंदी विभाग के प्रो. अवधेश प्रधान ने कहा कि देश के लोगों की विडंबना यही है कि उन्होंने बिना तपस्या किए ही भारत की धरती पर जन्म ले लिया। उन्हें छह ऋतुओं और बारहमासा के महत्व नहीं मालूम है। बताया कि नवयुवकों को घर की दादी-नानी से पूछना चाहिए कि वह हर उत्सव पर विभिन्न पकवान कैसे बनाती हैं। किस महाविद्यालय या विद्यालय में 'होम साइंस' की पढ़ाई की थी। इसका जवाब नहीं मिलेगा लेकिन सच है कि उन्होंने परंपरा से यह सब सीखा। कहा कि हमारे देश में शक्ति को समस्या बताया गया। भारत की विविध बोलियां, भाषा, परंपरा आदि देश की शक्ति हैं न कि समस्या।

इस अवसर डा. जितेंद्र नाथ मिश्र ने कहा कि प्रदेश सरकार ने भोजपुरी अकादमी बनाने की घोषणा करके 40 करोड़ लोगों की सेवा की है। कहा कि हमारी लोक परंपरा को दिखावे की संस्कृति ने लूटा है। आज दो-तीन घंटों में ही शादी की सारी विधियां हो जाती हैं। ऐसे में घर की बच्चियां लोकगीत सुन ही नहीं पाती। नई पीढ़ी को कुछ कहने के बजाय पहले खुद को सुधारने की जरूरत है।

इस अवसर पर जन भोजपुरी मंच के प्रो. सदानंद शाही व डा. रामसुधार सिंह ने भी मुख्यमंत्री द्वारा भोजपुरी अकादमी बनाने के फैसले पर खुशी जताई। संचालन डा. जयशंकर राय ने किया। दूसरी कड़ी में आयोजित कवि सम्मेलन में समीर शुक्ल, वैभव वर्मा, बृजमोहन अनाड़ी, दिनेश चंद्रा, रंजना राय, डा. धर्म प्रकाश, अशोक अज्ञान, बद्री विशाल आदि ने कविताएं सुनाई। धन्यवाद डा.अशोक राय ने किया।


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