ट्रामा सेंटर की घोषणा छलावा
उन्नाव, नगर संवाददाता : औद्योगिक नगरी कानपुर को राजधानी लखनऊ से जोड़ने वाले राष्ट्रीय राजमार्ग का लगभग चालिस किलोमीटर हिस्सा उन्नाव में पड़ता है इससे औसतन प्रति दिन चार दुर्घटनाएं और दो मौतें तथा आधा दर्जन लोग घायल होते है। दुर्घटना घायलों में अधिकांश हेड इंजरी का शिकार होते हैं। समय पर इलाज न होने से घायलों में कई की मौत हो जाती है। इस अहम समस्या को देखते हुए बसपा सरकार में जिले में ट्रामा सेंटर खोलने की जो घोषणा की गयी वह भी सरकार के पांच वर्षो में परवान नही चढ़ सकी। जिले के लोग ट्रामा सेंटर खुलने की राह तकते रह गये।
बसपा सरकार में सासंद बृजेश पाठक ने जिले में ट्रामा सेंटर खुलवाने की घोषणा की थी इसके लिए सरकार को प्रस्ताव भेजा गया था। जनपद के लोगों को उम्मीद थी कि जिले में ट्रामा सेंटर खुलने से उपचार के अभाव में मौतें नही होगी। पूरे पांच वर्ष तक बसपा सरकार रही पर जिले से ट्रामा सेंटर खोलने के लिए भेजे गये प्रस्ताव को मंजूरी नही मिल सकी। तत्कालीन सीएमओ डा. आरसी साहनी के अनुसार ट्रामा सेंटर खोलने के लिए दो बार प्रस्ताव भेजा गया पर लखनऊ से सटा जिला होने के कारण उसे मंजूरी नही मिल सकी। सरकार बदलने के साथ ट्रामा सेंटर खुलने की संभावनाएं भी क्षीण हो गयी है।
जहां तक ट्रामा सेंटर की उपयोगिता का प्रश्न है तो दुर्घटनाओं को देखते हुए जिले में ट्रामा सेंटर सर्वाधिक आवश्यक है। औसतन प्रति वर्ष ती सौ से साढ़े तीन सौ लोगों की मौत दुर्घटना में होती है। इनमें आधे से अधिक समय पर उपचार न मिलने के कारण जान गवां बैठते हैं। दरअसल हेड इंजरी वाले मरीजों के इलाज की जिले में कोई व्यवस्था नही है। चिकित्सक पट्टी बांध कर उन्हे लखनऊ कानपुर रिफर कर देते हैं। लखनऊ पहुंचने में कम से कम दो घंटे का समय लगता है। इस बीच रोगी दम तोड़ बैठता है। ट्रामा सेंटर के प्रस्ताव को मंजूरी न मिलने के पीछे कारण यह बताया जा रहा है कि लखनऊ में ट्रामा सेंटर होने के कारण जिले को इसका लाभ नही मिल सका। महिला और पुरूष अस्पताल में उच्चीकरण का कार्य कराया गया है इसके तहत ओपीडी, वार्ड का निर्माण कराया कराया गया है। दोनों बनकर तैयार हैं पर स्टाफ न मिलने से वार्ड को चालू नही कराया जा सका है। जबकि मरीज इतने अधिक है कि उन्हे बेड के अभाव में वापस लौटाया जाता है।
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