शक्ति रूपेण संस्थिता..
कुशहरी माता मंदिर अजगैन थानाक्षेत्र के ब्लाक नवाबगंज से 3 किमी दूर कुसुंभी गांव की सीमा में स्थित
कुशहरी माता मंदिर
अजगैन थानाक्षेत्र के ब्लाक नवाबगंज से 3 किमी दूर कुसुंभी गांव की सीमा में स्थित कुशहरी माता मंदिर शक्तिपीठ प्राचीन मंदिरों में माना जाता है। इस प्राचीन मंदिर में हजारों भक्त प्रतिदिन दर्शन पूजन के लिए आते हैं।
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ऐसे पहुंचें मंदिर
माता के मंदिर तक पहुंचने के दो रास्ते हैं राष्ट्रीय राजमार्ग पर नवाबगंज पहुंचने के बाद वहां से 3 किलोमीटर की दूरी तय करने के बाद कुशहरी गांव के बाहर माता का मंदिर है। सड़क मार्ग से आने वाले भक्तों को मंदिर तक जाने के लिए नवाबगंज से वाहन मिलते हैं। ट्रेन से आने वालों को कुसुम्भी स्टेशन पर उतरना पड़ता है। लखनऊ कानपुर रेलमार्ग पर कुसुंभी स्टेशन पर 24 पैसेन्जर ट्रेनों का ठहराव है। जिससे भक्त दर्शन करने को रेल यातायात का भी सहारा लेते हैं।
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मां की बरसती कृपा
माता कुशहरी के दर्शन करने और मन्नत मांगने से लोगों को उनका कुल दीपक मिलने की मान्यता है। मां कुशहरी को कुछ भक्त अपनी कुल देवी के रूप में भी पूजा करते हैं। इसके साथ ही यहां आने वाले भक्तों में असाध्य रोग को ठीक करने की भी मान्यता है।
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इतिहास
श्रीराम के बेटे कुश द्वारा स्थापित इस मंदिर की स्थापना को लेकर पौराणिक मान्यता है कि सीता माता को लिवाने जब लव व कुश परियर जा रहे थे तो यहीं विश्राम के लिए रूके थे। जहां पास में ही एक कुआं था जब उनके सैनिक कुएं से पानी निकालने लगे तो उन्हें एक दिव्य शक्ति ने आभास कराया की कुएं में कुछ है जिस पर जब भगवान राम के पुत्र कुश ने कुए में जाकर देखा तो उन्हे माता की मूर्ति मिली जिसे भगवान कुश ने उसे वही एक टीले पर स्थापित कर पूजा अर्चना की और अपने कुछ सैनिकों को वही एक गांव बसाने का आदेश दिया ताकि माता की पूजा अनवरत होती रहे। समूचे भारत में यही एक कुशहरी देवी का मंदिर है जिसमें आज भी मंदिर के पीछे कसौटी पत्थर पर एक ही छत्रधारी घोड़े पर सवार लव-कुश की मूर्ति भी बनी है। इससे प्रमाणित होता है कि देवी जी का संबंध लव-कुश से रहा होगा। ऐसा पुरातत्व वेत्ता यहां आकर सिद्ध भी कर चुके हैं और इसके बाद सरकार के पर्यटन विभाग ने भी इसक पर्यटन स्थल घोषित कर दिया था। इसके साथ ही पुरातत्व विभाग ने भी इसकी प्रमाणिकता देखते हुए इसे संरक्षित स्थल घोषित किया है। माता कुशहरी के मंदिर के ठीक सामने एक विशाल सरोवर भी बना है जो गऊ घाट की झील में मिलता है। मंदिर के बाहर आम नीम कदंब, इमली, पीपल के वृक्ष बड़ी संख्या में हैं। इस मंदिर को मुगल काल के दौरान तहस नहस करने का प्रयास किया गया और मंदिर को तोड़ फोड़ दिया गया इससे पूर्व की मुगलिया शासन काल में मूर्ति के साथ भी तोड़फोड़ होने से पहले माता के भक्तों ने उसे छिपा दिया था। इसके पुननिर्माण के विषय में बताया जाता है कि 1850 में नवाब वाजिद अली शाह के चकलेदार कायस्थ वंशी ठा. प्रसाद जी उन्नाव के पुरवा निवासी उसके यहां की नर्तकी भुलन के शरीर को लकवा मार गया था और उसने यहां मंदिर में माता से उसे ठीक करने का आशीर्वाद मांगा था और जिससे वह ठीक हो गई तब उसने माता के मंदिर का जीर्णोद्वार कराया उसे टीले से लाकर पुन: स्थापित करा एक भव्य मंदिर बनवा दिया।
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विशेषता
माता भक्तों की प्रतिमा को कीमती मानते हुए पूर्व में एक बार माता की प्रतिमा चोरी हो गई थी। जिसके बाद मां ने चोरों को अपनी प्रतिमा को वही टीले के पास छोड़ने का आदेश दिया इससे घबराये चोरों ने मां की प्रतिमा को रातों रात टीले के पास पहुंचा दिया सुबह भक्तों की नजर पड़ी तो भक्तों ने पुन: उन्हे दरबार में आसीन कराया। इससे आस्था इतनी बढ़ गयी की भक्त यहां के मंदिर में मां दुर्गा का साक्षात निवास मानते हैं।
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वास्तुकला
मंदिर सतयुग कालीन निर्मित है माता की प्रतिमा करीब 4 चार फुट ऊंची है और अष्टधातु की है। मंदिर के पीछे घोड़े पर सवार लवकुश की प्रतिमा भी स्थापित है जिससे प्रतीत होता है कि मंदिर का अस्तित्व सतयुग से है।
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माता के चरणामृत पान से और मां कुशहरी के लिए किये गये यज्ञ की राख शरीर में लगाने से असाध्य रोगों से मुक्ति मिलती है जो भी भक्त रोगी आस्था के साथ यहां आये है उनके कष्टों का निवारण माता ने किया है वही पुत्र की अभिलाषा लिए आने वाले दंपतियों को भी मां ने कुलदीपक दिया है।
- सुनील (प जारी)
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ऐसी मान्यता है कि मंदिर आने वाले भक्त की पुकार माता रानी जरूर सुनती हैं। दैहिक, दैविक संतापों से लोगों को मुक्ति मिलती है।
- अशोक कुमार ¨सह उर्फ पप्पू कमेटी अध्यक्ष
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कुसुम्भी मंदिर में माता के दर्शन के बाद लोगों में टीले वाले बजरंगबली बाबा के दर्शन करने की भी मान्यता है यहां एक टीले पर पवन पुत्र की विशाल प्रतिमा विराजमान है। इस मंदिर में बाबा बजरंगी के भक्तों का तांता लगता है।
- विजय कुमार अवस्थी उर्फ पुत्ती व्यवस्थापक