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साहित्य सृजन की जमीं पर झोपड़े में पुस्तकालय

उन्नाव, जागरण संवाददाता : कभी महाकवि पं.सूर्यकांत त्रिपाठी 'निराला' के साहित्य सृजन की सरजमीं रहे बै

By Edited By: Published: Sun, 14 Aug 2016 01:01 AM (IST)Updated: Sun, 14 Aug 2016 01:01 AM (IST)
साहित्य सृजन की जमीं पर झोपड़े में पुस्तकालय

उन्नाव, जागरण संवाददाता : कभी महाकवि पं.सूर्यकांत त्रिपाठी 'निराला' के साहित्य सृजन की सरजमीं रहे बैसवारा की बौद्धिक संपदा के क्षरण की बानगी बड़ौरा गांव में मिल जाएगी। गांव में आजादी से पहले खुला एक पुस्तकालय झोपड़े में है। ई-कांति के दौर में जब तमाम साहित्य डिजिटल व‌र्ल्ड में सहेजा जा रहा हो, तब मिजाज से साहित्य प्रेमी बैसवारा में साहित्य साधना के केंद्र गर्दिश में खो रहे हैं। बेकदरी के बाद भी पठन पाठन की रुचि ¨जदा रखने की पिता की कोशिशों को बेटा ¨जदा रखे हैं।

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बरौठा गांव के केदारनाथ पुस्तकालय व वाचनालय पर कभी बुद्धिजीवियों का दिन भर मजमा लगता था। इलाके के साथ देश के गंभीर मसलों पर चर्चा होती थी। तमाम पंचायतों के फैसले भी यहां से निकली राय से प्रभावित होते। सामाजिक कुरीतियों के दमन और इलाके के विकास की राह भी यहां मा¨नद लोगों के बीच हुई चर्चा से निकलती थी। वक्त बदला इलाके और समाज ने समृद्धि की राह पकड़ी पर न बदल सकी तो पुस्तकालय की हालत, तब भी झोपड़े में था और अब भी। विद्यार्थी सेवा समिति से जुड़े पं. बुद्धिशंकर तिवारी ने आजादी से एक साल पहले दो जून 1946 को पुस्तकालय व वाचनालय रखी तब दूरदराज के गांव वाले तक पुस्तकें पढ़ने आते थे, पर आज गांव के 30-40 बुजुर्ग और बच्चे ही नियमित पाठक हैं। पिता की मृत्यु के बाद अब संचालन कर रहे उनके पुत्र गणेश शंकर तिवारी प्रशासन की उपेक्षा से आहत जरूर हैं पर पिता का स्वप्न वह किसी भी हाल में टूटने नहीं देना चाहते। बताते हैं कि कच्ची दीवार सीलन के बीच लकड़ी की अलमारी में किताबों को सहेज कर रखना मुश्किल होता। प्रशासन से अपेक्षा थी कि उससे पक्का कमरा और दुर्लभ साहित्य को संभाल कर रखने के लिए दीमकरोधी रेक मिल जाए पर मदद हुई तो पांच साल पहले चंद किताबों की। डाक विभाग में पोस्टमैन रहे गणेश छह हजार मिलने वाली पेंशन से परिवार का गुजारा करने के साथ तमाम मैगजीन और अखबार भी खरीदते। गणेश ने मदद के लिए जनप्रतिनिधियों से भी अपेक्षा की कइयों से मिले पत्र लिखा। सांसद रहीं अन्नू टंडन से मदद मिली तो पर हैंडपंप के रूप में जबकि अपेक्षा पक्का भवन और साहित्य संजोने के बंदोबस्त की थी। बारिश भर तो गणेश को पुस्तकालय की फिक्र ज्यादा रहती, कहीं कच्ची कोठरी न ढह जाए, छप्पर न चूने लगे। सीलन बढ़ने से किताबों के खराब होने की ¨चता रहती। बारिश के दौरान जब धूप निकलती किताबों, मैगजीनो को नमी खत्म करने के लिए रखते जरूर।


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