जमीदारी खत्म, पर यहां तो जलवा है कायम
उन्नाव, जागरण संवाददाता : यूं तो सूबे में जमीदारी उन्मूलन एक्ट लागू हुए करीब छह दशक हो चुके हैं पर ज
उन्नाव, जागरण संवाददाता : यूं तो सूबे में जमीदारी उन्मूलन एक्ट लागू हुए करीब छह दशक हो चुके हैं पर जिले की भगवंत नगर, मौरावां बीघापुर नगर पंचायतों में वह अभी भी कायम है। यहां के लोगों की जमीन भले ही उनके कब्जे में हो लेकिन उनपर मालिकाना हक आज भी वहां के जमीदारों का ही बना हुआ है। जमीनों की खरीद फरोख्त में सबसे अहम मानी जाने वाली दाखिल खारिज और प-क-11 की प्रक्रिया यहां पूरी नहीं होती। लगातार बढ़ते परिवार और हो रहे विघटन के बाद बटवारे में आ रही समस्या विवादों का कारण बन रही है। नियमों के तहत आज भी जमीन की जरूरत पर जमीदार परिवार की ओर ही लोगो को ताकना पड़ता। इसके बाद भी हल निकलना मुश्किल होता। अभिलेखों में भी भूमिधरी जमीन का तो राजस्व अभिलेखों में सीमांकन हो गया पर जमीदार के नाम दर्ज जमीनों का अभी तक सीमांकन नहीं हुआ। इससे न सिर्फ वारिसों में विवाद है बल्कि तमाम विकास कार्यों में जमीन की जरूरत पर अड़चन पेश आती हैं।
राजनीतिक मंच हो या फिर कोई दूसरा स्थान आजादी की लड़ाई से लेकर दूसरी कोई परिचर्चा शुरू होते ही जमीदारी प्रथा की चर्चाएं शुरू हो जाती है। तमाम पार्टी उसे खत्म कराने का श्रेय लेती है और दूसरे को कोसती हैं। लेकिन आज भी जिले की कई नगर पंचायतों में इन्हीं का राज है। भले ही अब उनके काम काज का अंदाज बदल गया हो, अंग्रेजों की हुकूमत जैसा श्रेय न मिलता हो लेकिन आम लोगों को आज भी इस प्रथा का समय समय पर अहसास होता है। शायद आप को इन बातों पर विश्वास न हो रहा हो, लेकिन यह सही है। इसे प्रथा कहे या फिर कानून, जिले की भगवंत नगर, बीघापुर, मौरावां समेत पांच नगर पंचायतों में आज भी राजस्व अभिलेख इसी की गवाही दे रहे हैं। इन सभी क्षेत्रों में अभी भी संपत्तियों के लिए निकलने वाले इंतखाब में उन्हीं जमीदारों के नाम दर्ज चले आ रहे हैं। उनमें वारिसों में भी संपत्ति का बटवारा नहीं होने से आज भी जमीन खरीदने वाले स्वामी को उसका नाम अभिलेखों पर दर्ज नहीं मिलता। इससे पैसे अदा करने के बाद भी नियमों के तहत वह भूमि का मालिकाना हक पाने में वर्षों से जूझ रहा है। यदि कहीं किसी तरह उन जमीनों का दाखिल खारिज हो गया तो वह भी बिना सीमांकन या फिर प-क 11 न होने के कारण मान्य नहीं होता।
-नगर पंचायतों में जमीदारी की जो बात है वह गलत है, वहां पर नान जेडए है, जबकि अन्य क्षेत्रों में जेडए हो गया है। इससे वहां पर यह समस्या है, इसे जमीदारी नहीं कहा जा सकता है। नगर पंचायतों की भूमिकों को भी जेडए की श्रेणी में लाने की प्रक्रिया चल रही है। कई जगह पर पूरी भी हो गई है। - बृजनाथ यादव एडीएम वित्त एवं राजस्व