यहां सिर्फ मरीज किए जाते रिफर
सामुदायिक और प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्रों पर डाक्टरों की उपस्थिति और रोगियों के उपचार में बरती जा रही
सामुदायिक और प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्रों पर डाक्टरों की उपस्थिति और रोगियों के उपचार में बरती जा रही शिथिलता हकीकत का आईना दिखाने के लिए काफी है। कहने को सीएचसी व पीएचसी हैं लेकिन रोगियों को समुचित उपचार नहीं मिलता। नतीजा अस्पताल पहुंचते ही उन्हें रिफर लेटर तैयार रहता है। जिसपर केवल नाम पता भरते हैं और जिला अस्पताल के लिए रिफर कर दिया जाता है। यानी सही शब्दों यह स्वास्थ्य केंद्र कम केवल रिफर सेंटर बनकर रह गए हैं।
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उन्नाव, जागरण संवाददाता: डायरिया और वायरल जैसी सामान्य बीमारियों व जिन बीमारियों का प्राथमिक और सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्रों पर इलाज हो सकता है वहां कभी डाक्टर नहीं तो कभी विशेषज्ञ नहीं का तीमारदारों को जवाब सुना जिला अस्पताल रिफर कर दिया जाता है। हालत यह है सीएचसी, पीएचसी रिफरल सेंटर बने हैं। जिला अस्पताल में सीएचसी-पीएचसी से रिफर होकर आने वाले मरीजों की भरमार और बेड की कमी की पीड़ा जिला अस्पताल के सीएमएस स्वयं सीएमओ को लिखित अवगत करा चुके हैं लेकिन सीएमओ अपने मातहतों का ढर्रा नहीं बदलवा पा रहे हैं। जिला चिकित्सालय में सीएचसी और पीएचसी से रिफर होकर आने वाले रोगियों में 70 फीसद वह होते हैं जो सामान्य बीमारियों से पीड़ित होते हैं और उनका उपचार सामुदायिक और प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्रों पर आसानी से हो सकता है। उन्हें भी जिला अस्पताल रिफर कर दिया जाता है। औसतन प्रतिदिन 20 ऐसे मरीज रिफर होकर अस्पताल आते हैं जिनका उपचार सीएचसी-पीएचसी पर आसानी से किया जाता है। सामुदायिक और प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्रों पर डायरिया और वायरल बुखार के रोगियों को भी भर्ती नहीं किया जाता है। गुजरे 72 घंटे के अंदर जिला अस्पताल में 69 डायरिया रोगी भर्ती हुए हैं इनमें 47 ग्रामीण क्षेत्रों से आए हैं। इनके तीमारदारों का कहना है कि सीएचसी अथवा पीएचसी पर ले गया था वहां कोई डाक्टर नहीं था, जिससे मजबूरी में जिला अस्पताल लाना पड़ा। रोगियों के तीमारदारों की मानी जाए तो सीएचसी व पीएचसी दिन में 2 बजे के बाद रिफरल सेंटर बनकर रह जाते हैं। जब मरीज को लेकर पहुंचो तो वहां मौजूद फार्मासिस्ट विशेषज्ञ चिकित्सक नहीं है तो कभी हालत गंभीर बता रिफर कर देते हैं। इससे जिला अस्पताल में रोगियों की संख्या लगातार बढ़ रही है। इससे बेड भी कम पड़ जाते हैं। अस्पताल आने वाले किसी रोगी को वापस न करना पड़े इस लिए अक्सर एक बेड पर दो-दो रोगी लिटाने पड़ रहे हैं। गंभीर रोगियों को बेड की किल्लत से होने वाले संकट का सामना करना पड़ रहा है।
कुछ मामलों पर एक नजर
केस एक: थाना अचलगंज के गांव मैकुआखेड़ा निवासी कालीशंकर की पत्नी किशाना को 29 अप्रैल को उल्टी दस्त की शिकायत हुई। परिजन उन्हें 2.30 बजे अचलगंज सीएचसी ले गए। डाक्टर के न मिले पर वहां से उन्हें जिला अस्पताल रिफर कर दिया गया। इस पर उसे 3.10 बजे उसे जिला अस्पताल में भर्ती कराया।
केस दो: पुरवा के टेढ़वा निवासी पप्पू की पत्नी शशि को 27 अप्रैल को प्रसव पीड़ा हुई। दर्द से छटपटाती शशि को लेकर परिजन भोर पहर 6 बजे बिछिया सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र पहुंचे। यहां कोई महिला डाक्टर नहीं थीं। जो कर्मी मौजूद थे उन्होंने उसे जिला महिला अस्पताल रिफर कर दिया। परिजनों ने सुबह लगभग 7 बजे उसे महिला अस्पताल में भर्ती कराया जहां सामान्य प्रसव हुआ।
केस तीन: बीघापुर के गांव निहाल खेड़ा निवासी रामस्वरूप की पत्नी पूनम देवी को 30 अप्रैल के दिन प्रसव पीड़ा हुई। लगभग 2:30 बजे परिजन उन्हें बीघापुर अस्पताल लेकर पहुंचे। यहां कोई महिला डाक्टर नहीं मिली। इमरजेंसी ड्यूटी पर मौजूद डाक्टर से उसे जिला महिला अस्पताल रिफर करा दिया। मध्याह्न 3:30 बजे उसे महिला अस्पताल में भर्ती कराया गया, जहां सामान्य प्रसव हुआ।
केस चार: थाना अचलगंज के गांव हड़हा निवासी अफजल के 11 वर्षीय बेटे फैजान को उल्टीदस्त की शिकायत हुई। 30 अप्रैल को 3:30 बजे अचलगंज सीएचसी ले जाया गया। जहां उसका उपचार न कर जिला अस्पताल भेज दिया गया। पिता ने उसे इसके बाद जिला अस्पताल में भर्ती कराया। पिता का आरोप था कि सीएचसी में सामान्य रोगों का भी उपचार नहीं किया जाता।