जर्जर सड़कों पर 'मौत' का सफर
उन्नाव, जागरण संवाददाता: रफ्तार की दौड़भाग में जिंदगी इतनी सस्ती हो गई है कि पलक झपकते रगों में बहने
उन्नाव, जागरण संवाददाता: रफ्तार की दौड़भाग में जिंदगी इतनी सस्ती हो गई है कि पलक झपकते रगों में बहने वाला खून सड़कों पर फैल जाता है और इंसान कुछ ही देर में 'अपनों' से जुदा हो जाता हैं। इन हादसों में जान गंवाने वाले कुछ ऐसे भी लोग होते हैं जो अपने घर के 'कमाऊ पूत' या फिर बूढ़े माता-पिता की लाठी होते हैं। सड़क हादसे की चपेट में आने से कई बार पूरा परिवार भी काल के गाल में समा जाता है। बड़े हादसे में कुछ पल के लिए प्रशासन सांत्वना दे देता है पर बाद में सब भूल जाते हैं। 'कमाऊ' और 'इकलौते' बेटे के दूर जाने से कई लोग अकेले हो जाते हैं। कुछ ऐसी ही दास्तां बयां कर रही हैं उन्नाव की खस्ताहाल सड़कें।
जिले में बीते साढ़े चार सालों में अब तक 1516 लोग सड़क हादसों में अपनी जान गवां चुके हैं। वहीं 2155 लोग घायल होकर मौत के मुहाने तक पहुंचे। 2011 से लेकर 30 जून तक 2773 मार्ग दुर्घटनाएं हो चुकी हैं। कारण बनकर सामने आती है कभी खराब सड़कें, ट्रिपल राइ¨डग और हेलमेट न पहनना। वहीं विभाग द्वारा यातायात माह और दुर्घटना रहित दिवस जैसे दिनों में सिर्फ कागजी कोरम पूरे किए जाते है। जबकि 'ठेकेदार' गुणवत्ताविहीन सड़क बना अपनी जेब भरकर लोगों की जिंदगी से खिलवाड़ कर रहे हैं।
जनपद में सड़क हादसों का ग्राफ बढ़ता ही जा रहा है। इन्हें रोकने के लिए विभाग कोई प्रयास नहीं करता। क्षेत्र से सभी सड़कें खून से रंगी हुई हैं। ऐसे में लोगों को कभी न कभी 'अपनों' की याद जाती है। राजधानी से सटे जिले में बढ़ते सड़क हादसों को रोकने के विभाग ने अब तक कोई पहल शुरू नहीं की है। न ही व्यस्तम सड़कों पर स्पीड नियंत्रण के लिए डिवाइडर बनाए गए हैं और न ही खराब सड़कों की पै¨चग के लिए पीडब्ल्यूडी और नगर पालिका ने जहमत दिखाई। इतना ही नहीं व्यस्तम सड़कों के पास बने स्कूलों के समीप ट्रैफिक नियमों की धज्जियां उड़ती हुई नजर आती है। यातायात पुलिस द्वारा अगर ट्रैफिक व्यवस्था पर थोड़ी सी भी लगाम कस दी जाए तो मार्ग दुर्घटनाओं में कमी हो सकती है, लेकिन हालात से लड़कर उन्हें बदलने के लिए किसी भी विभाग का जिम्मेदार अफसर आगे आने से पहले अपने कदम पीछे खींच लेते हैं।
नाबालिग करते राइ¨डग
जनपद में कई ऐसे स्थान जहां पर नाबालिग आपको फर्राटा भरते हुए मिल जाएं तो चौंकिएगा नहीं। क्योंकि शायद यहां के अभिभावक जागरूक नहीं हैं या फिर उन्हें यातायात नियमों का ज्ञान नहीं हैं। अक्सर देखा जाता है कि हाईस्कूल और इंटरमीडिएट के छात्रों को बाइक का शौक होता है। ऐसे में अभिभावकों द्वारा उन्हें बाइक उस उम्र में दिलवा दी जाती है, जब उनका लाइसेंस भी नहीं बन पाता। इसके बाद वह अनियंत्रित गति से वाहन भगाते हैं और हादसे का शिकार हो जाते हैं।
हेलमेट व सीट बेल्ट की नहीं ¨चता
अक्सर देखा जाता है कि यातायात पुलिस के सामने बाइकर्स बिना हेलमेट पहने हुए फर्राटा भरते नजर आते हैं। वहीं कार चालक भी सीट बेल्ट नहीं पहनते। बाइक चलाते समय हेलमेट और कार ड्राइव करते समय सीट बेल्ट पहने हो तो हादसे के दौरान चुटहिल होने की सम्भावना कम रहती है। अक्सर दुर्घटना के बाद सिर और सीने में आने वाली मामूली चोटें आपको 'यमदूत' के पास खींच ले जाती हैं।
नहीं दिखती जागरूकता
जनपद में यातायात माह छोड़कर वाहन चालकों को जागरूक करने के लिए कोई अभियान नहीं चलाया जाता। जबकि यातायात माह में सिर्फ स्टीकर और वाहन चे¨कग कर कार्य पूरा किया जाता है। यातायात माह में सप्ताह में एक बार स्काउट-गाइड के माध्यम से नियमों का पालन करने के तरीके बताए जाते हैं। इसके बाद से विभाग द्वारा सुरक्षित यातायात के लिए कुछ नहीं किया जाता हैं। कुछ ऐसा ही एआरटीओ विभाग द्वारा एक जुलाई को मनाए गए दुर्घटना रहित दिवस में देखना को मिला।
सड़क दुर्घटनाओं पर आंकड़ा
वर्ष दुर्घटना मौत घायल
2011 568 331 497
2012 646 344 508
2013 613 316 518
2014 620 340 422
जून 2015 326 185 210
कुल 2773 1516 2155
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समय समय पर सड़क पर सुरक्षित चलने के लिए लोगों को जागरूक किया जाता है। चे¨कग अभियान में भी हम लोग सुरक्षित यातायात के लिए हेलमेट के प्रयोग पर जोर देते हैं। दुर्घटनाओं को कम करने के लिए चे¨कग और कार्रवाई की जाती। अब जागरूकता के लिए भी कार्यक्रम चलाए जाएंगे।
- गोपी नाथ सोनी, सीओ ट्रैफिक उन्नाव