पैसा मिला, फिर भी उपयोग आधा अधूरा
उन्नाव, जागरण संवाददाता : वर्ष 2014-15 की जिला योजना को लेकर पूरे वर्ष बड़ी बड़ी कवायद की गई लेकिन अंत
उन्नाव, जागरण संवाददाता : वर्ष 2014-15 की जिला योजना को लेकर पूरे वर्ष बड़ी बड़ी कवायद की गई लेकिन अंत में नतीजा वही ढाक के तीन पात जैसा रहा। जिन्हें पैसा मिला उन्होंने उपयोग तो किया पर आपेक्षित रफ्तार नहीं दे सके। जलनिगम हो या फिर इंदिरा आवास योजना सभी में धन की उपलब्धता होने के बाद भी लाभार्थियों को उनका आपेक्षित लाभ मिला न ही गर्मी की समस्या से निपटने के लिए समय से पेयजल की समस्या से ही निपटा जा सका है। दूसरी तरफ हर बार की तरह वह विभाग वित्तीय वर्ष के समापन पर अपने अभिलेखों में योजनाओं को धनाभाव के कारण आधा अधूरा दर्ज करने के लिए विवश हैं।
चालू वित्तीय वर्ष में जिला योजना के लिए 1 अबर 86 करोड़ 29 लाख रुपए का बजट प्रस्तावित किया गया। इसमें से लगभग सभी विभागों ने अपनी बंद पड़ी योजनाओं और धनाभाव में रुक रहे कामों के चालू होने की उम्मीदों को पंख मिले। लेकिन उनकी उम्मीदे वित्तीय वर्ष के समापन तक पहुंचते पहुंचते टूट गई। हालत यह रही कि अधिकांश वह विभाग जिन्होंने जिला योजना के माध्यम से काफी कम मांग की उसके बाद भी उनके हिस्से में कुछ भी नहीं आया। इसका उदाहरण उद्यान, पशुपालन, होम्योपैथिक चिकित्सा आदि विभाग है। पैसे न मिलने से यह विभाग अपने मूल बजट के भरोसे ही योजनाओं को धक्का देकर आगे बढ़ाने को मजबूर हैं। दूसरी तरफ नगरीय, व ग्रामीण पेयजल योजनाओं को उनकी मांग के अनुरूप तो नहीं फिर भी काफी मात्रा में जिला योजना से बजट मिला लेकिन उनके कार्य अभी भी केवल कागजों में ही पूरे हो रहे है। इसका उदाहरण खराब हैंड पंप, पेयजल के लिए यहां वहां भाग दौड़ करते लोग हैं। जहां तक शत प्रतिशत धन मिलने की बात है तो लोहिया गांवों में सीसी सड़कों और शौचालय निर्माण के लिए धन शत प्रतिशत मिला। उसके मार्च माह में ही खर्च करने के लिए विभागीय अधिकारी इन दिनों रात दिन काम कराने की होड़ लगाए हैं। इसके बाद भी निर्धारित समय में यह काम अब तक पूरे नहीं हुए हैं।
सड़कों पर न मेहरवान हुई जिला योजना
वैसे आम आदमी की सबसे मूल आवश्यकताओं में शामिल सड़क बिजली, पानी और खाना है। इसमें जिला योजना ने पेंशन, छात्रवृत्ति, और आवास को अहमियत दी गई । लेकिन सड़क पुल के लिए की गई 31 करोड़ से अधिक की मांग के सापेक्ष मात्र सवा दो करोड़ ही दिया गया। जो सैकड़ों किमी लंबे सड़क मार्गो को दुरस्त करने के लिए काफी कम है। इस संबंध में अधिशाषी अभियंता हरीशंकर यादव कहते हैं कि जिला योजना से जो धन मिला उसी अनुसार उनके प्रस्ताव के काम कराए जा रहे हैं। कुछ अन्य मदों से योजना का धन मिल गया तो काफी सड़कों का निर्माण कार्य उनके माध्यम से कराया जा रहा है।
सोचा था देनदारियां से मिलेगी राहत
खादी ग्रामोद्योग केंद्र द्वारा जिला योजना से मात्र सात लाख रुपए मिला। जिला खादी ग्रामोद्योग अधिकारी लक्ष्मी कांत नाग कहते हैं कि लगभग 2 करोड़ की देनदारियां है। सोचा था कि जिला योजना से कुछ अधिक पैसा मिलेगा तो देनदारियों से राहत मिलेगी। लेकिन मात्र सात लाख से ही संतोष करना पड़ा। अब इसी से किसे निपटाना है और किसे नहीं यही मंथन कर रहे हैं।
पिछली बार भी नहीं मिला था कुछ
उद्यान विभाग के सहायक उद्यान अधिकारी आरबी वर्मा कहते हैं कि 6.96 लाख का प्रस्ताव रखा था। लेकिन इस बार भी पिछले वर्ष की जिला योजना जैसा हश्र हुआ। न तो उस बार कुछ मिला था न ही इस बार। ऐसा ही कुछ कहना है पर्यटन विभाग से जुड़े अधिकारियों का, एक करोड़ के प्रस्ताव में एक धेला भी उनके हिस्से में नहीं आया। यह तो गनीमत रही कि केंद्रीय पयर्टन क्षेत्र को सवा दो करोड़ से अधिक की धनराशि स्वीकृत हो गई है। अन्यथा जनपद का पर्यटन क्षेत्र एक बार फिर उपेक्षा का शिकार ही बना रहता।