कतकी के बाद गंगा की रेती में 'सूद की खेती'
शुक्लागंज, संवाद सूत्र : पतित पावनी गंगा किनारे बसे शुक्लागंज नगर के दो मोहल्लों की एक बड़ी आबादी वाल
शुक्लागंज, संवाद सूत्र : पतित पावनी गंगा किनारे बसे शुक्लागंज नगर के दो मोहल्लों की एक बड़ी आबादी वाले लोग हर वर्ष गंगा के जलस्तर घटने का इंतजार करते रहते हैं कि कब जलस्तर घटे और गंगा में रेती आ जाए। जिससे वह सूदखोरों से ब्याज पर रुपए लेकर रेती में खेती कर सकें। यह लोग साल में दो बार पूरे परिवार के साथ रेती की खेती करके वहीं पर झोपड़ियां दिन रात काटते हैं। हालांकि, इन किसानों को हर बार मुनाफे के साथ घाटे का भी मुंह देखना पड़ता है।
बता दें कि नगर के पश्चिमी गंगाघाट में बसे गोताखोर कालोनी के ज्यादातर व चंपापुरवा मुहल्ले के आंशिक परिवार हर साल गंगा के जलस्तर घटने का इंतजार करते हैं कि कब गंगा की रेती खुले और वह रेती में खेती कर सकें। किसानों ने बताया कि कतकी का स्नान होने के बाद ही वह लोग
रेती में सबसे पहले पयार पहुंचाते हैं इसके बाद खेती करने के लिए बीज बोना शुरू कर देते हैं। जो कुछ माह बाद फागुन के समय गर्मियों में सब्जियां देता है। जिन्हें तोड़-तोड़कर वह लोग मंडियों तक पहुंचाते हैं। बताया कि गंगापुल के नीचे रेती खुलने से वह लोग खुश तो हैं लेकिन रेती में खेती करने के लिए वह अभी रुपए इकट्ठा करने के बंदोबस्त में लगे हुए हैं। बताया कि जिन लोगों के रुपयों का इंतजाम हो गया है वह लोग रेती में जगह लेकर पयार पहुंचाना शुरू कर दिया है। किसानों ने बताया कि वह लोग 6 नवंबर को पड़ने वाले कतकी स्नान के बाद से रेती में अपनी-अपनी जगहों बीज बोने के लिए कब्जा करना शुरू कर देंगे।
500 से ज्यादा परिवार लेते रुपया खेती करने वाले किसानों में मुहम्मद शकील, हलीम, शाबिर, इस्लाम, यार मोहम्मद, सबी अहमद, यासीन, जुबैर, खालिद, आदि ने बताया कि रेती में खेती करने के लिए हर बार 500 से ज्यादा परिवार शामिल होते हैं। यह परिवार ज्यादा सम्पन्न न होने के कारण खेती करने के लिए सूदखोरों से 3 से 5 प्रतिशत ब्याज पर पैसा लेते हैं।
बोए जाएंगे इन सब्जियों के बीज
किसानों की मानें तो नवंबर माह में पड़ने वाले कतकी स्नान के ठीक बाद से ही वह रेती की खेती में खीरा, ककड़ी, तरबूज, लौकी, तरोई, करेला व कद्दू आदि के बीज खाद आदि के साथ बोएंगे।
चार बार होता किसानों का नुकसान
खेती करने वाले किसानों नें बताया कि उन्हें खेती करने के बाद चार बार भारी नुकसान का सामना करना पड़ता है। बताया कि सर्दियों के समय शुरू हुई खेती में पाला, फिर ओलावृष्टि, इसके बाद गर्मी के समय में भीषण धूप खेती को झुलसा देती है। इसके बाद जलस्तर बढ़ते ही बाढ़ का सामना करना पड़ता है।
दबंगई दिलाती खेती के लिए जगह
भरोसेमंद सूत्रों की मानें तो गंगा की रेती में खेती करने के लिए जगह केवल दबंगई की दम पर मिल पाती है। जो जितना दबंग होता है वह उतनी ज्यादा जगह कब्जा कर लेता है।