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थाने से चंद दूरी पर कट गया हरा भरा बगीचा

By Edited By: Published: Thu, 24 Jul 2014 01:37 AM (IST)Updated: Thu, 24 Jul 2014 01:37 AM (IST)
थाने से चंद दूरी पर कट गया हरा भरा बगीचा

उन्नाव, जागरण संवाददाता: जिले ही नहीं प्रदेश के पुलिस उच्चाधिकारी पड़े कटान करने वालों के साथ सख्ती से निपटने के लिए जोर दे रहे हैं। हाल में इसी सब के चलते कुछ थानेदारों को कुर्सी तक छोड़नी पड़ी। इतनी सख्ती के बाद भी जिले के हसनगंज थाने की पुलिस इस तरह के आदेशो को नहीं मानती। थाने से चंद किमी. की दूरी पर स्थित मौला बाकीपुर गांव में हरे आम व महुआ के 36 पेड़ों पर पुलिस की सहमती से कुल्हाड़ा चला। अवैध कटान का शोर हुआ तो पुलिस मौके पर पहुंची और कार्रवाई करने का बयान दिया। लेकिन बाद में किसी उच्चाधिकारी के करीबी का मामला बता उसे अवैध कटान की खुली छूट दे दी।

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मामला हसनगंज थाने के गांव मौला बाकीपुर का है। यहां के निवासी सेवानिवृत्त राज्य कर्मी के गांव में 36 आम व महुआ के पेड़ थे। नियमत आम व महुआ, नीम समेत फलदार पेड़ों का काटा जाना प्रतिबंधित है। बाकी पेड़ों को काटने के लिए भी वन व पुलिस विभाग की अनुमति आवश्यक है। सेवानिवृत्त कर्मचारी को अपने पेड़ कटाने थे, लेकिन पुलिस की सहमती के बिना यह संभव नहीं था। इससे कर्मचारी ने थाने के साहब से सेटिंग बनायी और शुरू कर दिया हरे पेड़ो पर कुल्हाड़ा चलाना। खाकी से निर्धारित शर्तो पर काम तो शुरू हो गया पर कर्मचारी द्वारा उसमें कुछ कमी छोड़ दिए उसे बाद में पूरा करने का आश्वासन दिया गया। इससे नाराज थाना पुलिस आधे से अधिक कटान हो जाने के बाद बाग पहुंची और काम को रुकवा पहले शर्त अथवा वादा पूरा करने का फरमान सुना उसी के बाद आगे की लकड़ी उठाने के लिए कहा। बाग तक पुलिस के पहुंचते ही अवैध कटान पकड़े जाने का शोर मच गया। लोगों ने थाने के साहब से इसे लेकर सवाल जवाब किए तो उन्होंने कहा कि अवैध रूप से लकड़ी कटान की सूचना मिली है। जांच हो रही है अवैध रूप से लकड़ी काटने वालों के विरुद्ध कार्यवाही की जाएगी।

इधर थाना पुलिस द्वारा लकड़ी कटान रोक देने पर सेवानिवृत्त कर्मचारी ने पुलिस की शेष रह गई शर्तो को पूरा कर दिया। इसके बाद पुलिस ने उन्हें बाकी बचे पेड़ों को काटने और काटी गई लकड़ी को उठाने के लिए खुली छूट देते हुए मुहं फेर लिया। एक बार फिर मीडिया ने अचानक हुए इस परिवर्तन को लेकर सवाल उठाए तो थाने के साहब ने यह कहते हुए खुद का बचाव कर लिया कि मजबूरी थी एक उच्चाधिकारी का फोन आ गया, मामलों को दबाना पड़ा। यह उच्चाधिकारी कौन था और किसके आदेश पर यह रोका गया। यह उन्होंने बताने से इंकार कर दिया।


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