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नदी, सरोवर और कुंड सहेजने निकल पड़े तटरक्षक

सुलतानपुर पांच साल पहले एक व्यक्ति सीताकुंड घाट पर एक शिवालय में बैठा था। तभी मंदिर की दशा देख उसक

By JagranEdited By: Published: Mon, 22 May 2017 10:00 PM (IST)Updated: Mon, 22 May 2017 10:00 PM (IST)
नदी, सरोवर और कुंड सहेजने निकल पड़े तटरक्षक
नदी, सरोवर और कुंड सहेजने निकल पड़े तटरक्षक

सुलतानपुर

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पांच साल पहले एक व्यक्ति सीताकुंड घाट पर एक शिवालय में बैठा था। तभी मंदिर की दशा देख उसका मन विचलित हो उठा। देवालय में गंदगी और कूड़ा-करकट, कैसे कहें यह भगवान का घर? यही भाव मन में आया। दूसरी ओर नजर घुमाई तो आदि गंगागोमती थी। उसमें उत्तर की दिशा से शहरी कूड़ा-करकट बंधे का सहारा लेकर डाला जा रहा था, जो गिरकर नदी में समा रहा था। एक तरफ भगवान, दूसरी ओर गोमती मइया। दोनों पूज्यनीय। फिर कैसा व्यवहार समाज और लोग कर रहे हैं? इस सवाल ने पलभर के लिए ¨ककर्तव्यविमूढ़ किया। मगर, अंदर से हिम्मत जगी, जिसने कहा कि अगर हर कोई सोचना छोड़ देगा तो संस्कृति और सभ्यता दोनों कैसे बचेगा।तभी इस शख्स ने आदि गंगा गोमती को स्वच्छ अविरल बनाने का संकल्प लिया और सात लोगों की टोली बन गई। नाम दिया गया गोमती मित्रमंडल। अब वे तटरक्षक की भूमिका में सुलतानपुरवासियों की आंखों के सामने हैं। पर्यावरण का पाठ याद कराने के लिए यह लोग, वाल राइ¨टग तो कराते ही हैं। साथ नदीं के तट पर पौधरोपण करके हरियाली भी फैला रहे हैं।रुद्रप्रताप मदन ¨सह, कुंवर दिनकर प्रताप ¨सह, राजेश पाठक, राजकरन गौतम, सालिकराम प्रजापति,राजेंद्र शर्मा, संत कुमार प्रधान शुरुआती इन सात लोगों की टोली ने अब 135की भारी भरकम फौज बना ली है। जिसका एक मात्र उद्देश्य पर्यावरण की रक्षा करना, नदी की धारा को स्वच्छ बनाना, जलाशयों की हिफाजत करना है। उसके लिए लोगों को जगाना और धर्म-अध्यात्म के जरिए प्रेरित करना है। जिले में गोमती नदी इसौली विधानसभा क्षेत्र से प्रवेश करती हैं और कोइरीपुर प्रतापगढ़ सीमा पर यह जिला छोड़ती है। इतनी दूर में ही इसमें बड़ी मात्रा में कूड़ा-कचरा तो समाहित हो ही जाता है। साथ ही औद्योगिक कचरा भी नदी के पानी को विषैला बनाता है। गांव,शहर, घरों में होने वाले पूजन-अर्चन के दौरान पूजन सामग्रियों का विसर्जन भी लोग इसी नदी में करते थे। यही नहीं दुर्गापूजा महोत्सव के बाद सैकड़ों मूर्तियों का विसर्जन भी गोमती की जलधारा में किया जाता रहा। गोमती मित्रमंडल को लगा कि आदि गंगा को बचाने के लिए पहले जनजागरण जरूरी है। इस नाते सबसे पहले क्षेत्रवार नदी के घाटों पर उन्होंने टोलियां बनाई। इन टोलियों का दायित्व था कि सप्ताह में एक बार आदि गंगा की आरती करके लोगों में इसकी महत्ता जगाएं। ऐसे कार्यक्रम होने लगे, लोगों की सहभागिता ने आयोजकों को खूब उर्जा दी। अब महीने के अंतिम शनिवार को कोइरीपुर के शिवालय के पास नदी के घाट पर और द्वितीय शनिवार को दियरा घाट पर आरती होती है। जबकि शहर के सीताकुंड घाट पर हर रविवार को महाआरती का आयोजन किया जाता है।इस महाआरती में सैकड़ों लोग शामिल होते हैं। शहर या जिले की एक बड़ी शख्सियत को आरती का यजमान बनाया जाता है।


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