कांपते पैर भी दौड़ने लगे..
राजेंद्र यादव, सुल्तानपुर जो बीमार थे, लाचार थे, असहाय थे। जिन्हें दवा और बिस्तर के सहारे सेहतमं
राजेंद्र यादव, सुल्तानपुर
जो बीमार थे, लाचार थे, असहाय थे। जिन्हें दवा और बिस्तर के सहारे सेहतमंद किया जा रहा था। भूकंप के झटके से वे भी दहशत में आ गए। जान कितनी कीमती है, यह तो कोई उन्हीं से पूछे। क्योंकि कांपते पैर आज दौड़ने लगे। शनिवार को चंद मिनटों के भीतर जिला अस्पताल में यही सब दिखा।
गंभीर रूप से बीमार मरीज इस कदर भयभीत हो गए कि बेड छोड़ हाथ में ग्लूकोज की बोतल लेकर भागते दिखाई पड़े। चिकित्सक व स्वास्थ्य कर्मी भी खौफजदा दिखे। ओपीडी, वार्ड व कार्यालय थोड़ी ही देर में सूने हो गए। जान बचाने के लिए सब लोग भवन से निकलकर खुले आसमान के नीचे जा पहुंचे।
पूर्वाह्न करीब पौने बारह बजे रोजाना की तरह जिला अस्पताल में भीड़-भाड़ थी। चिकित्सक ओपीडी में मरीजों की जांच कर रहे थे। स्वास्थ्यकर्मी वार्डो में भर्ती मरीजों की देखभाल में जुटे थे। वहीं कर्मचारियों ने अभी काम शुरू ही किया था कि तभी भूकंप के झटकों ने यह नजारा बदल दिया। जो मरीज ठीक से खड़े भी नहीं होने की स्थिति में नहीं थे। भूकंप के झटकों ने उन्हें भी झकझोर कर रख दिया। जान बचाने के लिए वे बेड से उठ खड़े हुए, क्योंकि अब उन्हें बीमारी से अधिक खतरा भूकंप से लग रहा था। दूबेपुर के बंधुआकला निवासी अस्सी वर्षीय बशीर खान हाथ में बोतल पकड़े बीमार पत्नी को लेकर जान बचाकर वार्ड से बाहर भागे। निरालानगर निवासी विवेक शर्मा की पत्नी प्रमिला डायरिया से पीडि़त थी। अभी उनको चिकित्सकों ने उन्हें ग्लूकोज चढ़ाना शुरू ही किया था कि अचानक धरती हीलने लगी। विवेक एक हाथ में ग्लूकोज की बोतल व दूसरे हाथ पत्नी को संभालते हुए अस्पताल से बाहर की ओर भागे। धरती के भगवान कहे जाने वाले चिकित्सक मरीजों को छोड़ अपनी जान बचाते देखे गए। स्वास्थ्यकर्मियों ने मरीजों की कुशलक्षेम की चिंता छोड़कर अस्पताल से भाग खड़े हुए।