मनसा-वाचा-कर्मणा.बचा रहे गोमती
सुल्तानपुर : मन से वचन से और कर्म से आदि गंगा की आराधना करने निकले हैं। उनकी नजरों में गोमती जल की
सुल्तानपुर : मन से वचन से और कर्म से आदि गंगा की आराधना करने निकले हैं। उनकी नजरों में गोमती जल की निर्मलता अक्षुण्य रहे, सही सतत प्रयास है। दीवारों पर लेखन, बैनरों को टांगकर यही संदेश दिया जा रहा है कि हम सब हैं गोमती के तारणहार।
शहर के सीताकुंड घाट पर आदि गंगा गोमती का जल कभी काला तो कभी घोर प्रदूषित आता रहा। कारण जगदीशपुर इंडस्ट्रीरियल एरिया से लेकर कई फैक्ट्रियों का कचरा नदी में सीधे गिराया जाता है। प्रदूषण के चलते अक्सर मछलियां व अन्य जल-जीव मरकर नदी के किनारे बड़ी संख्या में इकट्ठा हो जाते रहे। यह एक दिन की घटना नहीं थी। प्राय:हर माह एकाध बार तो ऐसा शहर और गांव के लोग तो देख ही लेते थे। पानी इतना गंदा कि लोग पर्वो पर स्नान से भी बचने लगे। शायद यह चरम था मां आदि गंगा की दयनीय दशा का। सीताकुंड घाट शहर का एक मात्र नदी का बड़ा और पवित्र घाट माना जाता है। दूर-दूर से श्रद्धालु यहां आते और उन्हें आदि गंगा का यह दृश्य कचोटता। शायद यह बीड़ा स्थानीय लोगों को बर्दाश्त न हुई। सो, कुछ लोगों ने तो आदि गंगा की निर्मलता का बीड़ा उठा लिया। इसके लिए घाट की साफ-सफाई, जन-जागरण व मंदिर पर प्रत्येक मंगलवार को सुंदर कांड का पाठ शुरू हुआ। चंद लोगों से हुई शुरूआत अब बृहद रूप में दिखने लगी। पेशे से कोई वकील है तो कोई शिक्षक, कोई सामाजिक कार्यकर्ता परिवार चलाने को कोई न कोई व्यवसाय हर कोई करता है। पर, मन मां गंगा की निर्मलता की ओर लगा रहता है। वचन अनमोल नारों में परिवर्तित हो बैनर और होर्डिग्स सजते हैं। दीवारों पर स्लोगन लिखे जाते हैं और नदी की साफ-सफाई एक-दो नहीं चालीस-पचास लोगों की बड़ी टीम अक्सर निकल पड़ती है। यहीं नहीं दूर देहातों में भी जिधर से गोमती बहती हैं, अगर सूचना आती है कि पानी वहां बहुत गंदा है तो लोग वहां भी जाते हैं और जो बन पड़ता है करते भी हैं। यह कभी गोमती मित्र मंडल के नाम से तो कभी गायत्री परिवार के नाम से, लेकिन काम उनका बस एक नदी की निर्मलता बनी रहे। उनके हाथ मां की सेवा को तत्पर रहे।