जमील ने अकेले दम खोद डाला कुआं
सुल्तानपुर : 'कौन कहता है कि आसमां में सुराख नहीं हो सकता / पर एक पत्थर तो तबियत से उछालो यारों'..ये
सुल्तानपुर : 'कौन कहता है कि आसमां में सुराख नहीं हो सकता / पर एक पत्थर तो तबियत से उछालो यारों'..ये पंक्तियां जमील अहमद पर बिल्कुल फिट बैठती है। लम्भुआ तहसील क्षेत्र के गांव घरवासपुर में शहीद बाबा की मजार और कब्रिस्तान के इर्दगिर्द कोई हैंडपंप और न ही कुआं। जनप्रतिनिधियों ने भी इस पर ध्यान नहीं दिया। राहगीरों की मुश्किलों को भांप अधेड़ जमील, अकेले ही जुट गए कुआं खोदने में। ..और असंभव को संभव कर डाला। वे अब सामाजिक सरोकार व परोपकार की जीती-जागती मिसाल हैं।
घरवासपुर गांव के पास शहीद बाबा की मजार है। यहीं पर एक कब्रिस्तान भी है। करीब पांच वर्ष हो रहे हैं, यहां पर न तो कोई कुआं था और न ही हैंडपंप ही। आनापुर-रजवाड़े रामपुर के रास्ते पर पड़ने वाली इस जगह पर राहगीरों को भी मुश्किलें होती थीं। तपती दोपहरी में किसी को पानी तक नहीं नसीब हो पाता था। क्षेत्रीय जनप्रतिनिधियों से क्षेत्रवासी जमील अहमद ने इसके लिए फरियाद की लेकिन सभी ने अनसुना कर दिया। ऐसे में 60 वर्षीय जमील अहमद ने खुद ही फावड़ा उठा लिया और जुट गए कुआं खोदने में। जिसने भी देखा उन्हें सनकी समझा। कोई मदद को आगे नहीं आया। वे कुएं के भीतर मिट्टी खोदते और सीढ़ी लगाकर उसे बाल्टी से भरकर बाहर लाते रहे। आखिरकार मेहनत रंग लाई 25 दिन के भीतर 35 फीट गहरा कुआं खोद डाला। जब पानी का सोता फूटा तो उनके खुशी का ठिकाना नहीं रहा। आज भी ये कुआं पानी की तलाश में भटकने वालों के लिए उम्मीद की एक किरण है। हालांकि मजदूरी कर जीवन बसर करने वाले जमील अहमद कहते हैं कि अभी काम अधूरा है। आर्थिक तंगी की वजह से कुएं को पक्का नहीं करा पाया। सोचा था इलाके की नुमाइंदगी करने वाले जनप्रतिनिधि कुछ मदद करेंगे लेकिन सबके वायदे थोथे साबित हुए हैं। अगला कदम यही होगा। जोड़ बटोरकर कुएं को पक्का करवाकर जगत बनवावाऊंगा।