'आजादी की लड़ाई में कई बार जेल गए थे रामबली'
सुल्तानपुर : गरीब परिवार में जन्में पं.रामबली मिश्र जिले के सैकड़ों लोगों को आजादी का दीवाना बनाने में कोई कोरकसर नहीं छोड़ी। आजादी की लड़ाई में उन्हें कई बार जेलों की हवा खानी पड़ी थी। बातें वक्ताओं ने गुरुवार को 35वीं पुण्यतिथि पर मिश्र को याद करते हुए कही।
35वीं पुण्यतिथि पर शोभाराम राष्ट्रीय इंटर कॉलेज चंदीपुर में हवन-यज्ञ व पूजन का आयोजन किया गया। लोगों ने मिश्र के चित्र पर माल्यार्पण उन्हें श्रद्धांजलि दी। इस मौके पर आयोजित विचार गोष्ठी में प्रबंधक योगेंद्र मिश्र ने कहाकि पं.रामबली मिश्रा का जन्म 20 सितंबर 1914 को मायंग गांव में हुआ था। बचपन में उनके पिता गोकुल प्रसाद का देहांत हो गया। मिश्र के सिर से पिता का साया उठ गया। हाईस्कूल की शिक्षाग्रहण करने के बाद 1934 में कांग्रेस की सदस्यता ली और तहसील कांग्रेस कमेटी के सदस्य बने। 14 मार्च 1936 को झंडा सत्याग्रह में सर्वप्रथम रामबली मिश्र ने हिस्सा लिया था। जिसके बाद अंग्रेजी हुकूमत ने उन्हें तीन माह कैद सजा व 25 रुपये अर्थदंड की सजा सुनाई। इसके बाद से मिश्र अंग्रेजी हुकूमतों के खिलाफ सभी आंदोलनों में खुलकर हिस्सा लेना शुरू कर दिया। इस दौरान उन्हें कई सलाखों की हवा खानी पड़ी थी। 1942 में भारत छोड़ो आंदोलन के समय मिश्र दो वर्ष तक नजरबंद रहे। इस दौरान सुल्तानपुर व नैनी जेल में उन्हें निरुद्ध किया गया। आजादी के बाद बचे जीवन को उन्होंने समाज को दिया। चार बार विधायक रहे मिश्र ने अनेक शिक्षण संस्थाओं की स्थापना की। 28 अगस्त 1980 को उन्होंने अंतिम सांस लेकर अपने व्यक्तित्व की खुशबू बिखेरकर क्षेत्र की मिट्टी को अमर कर दिया। इस मौके पर काशीनाथ मिश्र, राजीव मिश्र, वेद तिवारी, डॉ.शीतला तिवारी, शिवकुमार दुबे, राजकरन यादव, शोभनाथ पांडेय, अशोक मिश्र आदि मौजूद रहे।