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जनपद के सबसे बड़े उच्च शिक्षा केंद्र की हो रही उपेक्षा

जागरण संवाददाता, ओबरा (सोनभद्र) : उत्तर प्रदेश को सबसे ज्यादा राजस्व देने वाले जनपद के सबसे बड़े उच्च शिक्षा केंद्र ओबरा पीजी कालेज की हालत ने शासन प्रशासन की कार्यप्रणाली पर गंभीर सवाल खड़ा कर दिया है।

By JagranEdited By: Published: Wed, 11 Jul 2018 04:31 PM (IST)Updated: Wed, 11 Jul 2018 09:12 PM (IST)
जनपद के सबसे बड़े उच्च शिक्षा केंद्र की हो रही उपेक्षा
जनपद के सबसे बड़े उच्च शिक्षा केंद्र की हो रही उपेक्षा

जागरण संवाददाता, ओबरा (सोनभद्र) : उत्तर प्रदेश को सबसे ज्यादा राजस्व देने वाले जनपद के सबसे बड़े उच्च शिक्षा केंद्र ओबरा पीजी कालेज की हालत ने शासन-प्रशासन की कार्यप्रणाली पर गंभीर सवाल खड़ा कर दिया है। आदिवासी बाहुल्य जनपद को लेकर प्रदेश के शिक्षा विभाग की उपेक्षा ने सबका साथ सबका विकास के नारे को हाशिये पर लाकर खड़ा किया है। लगभग एक दशक पहले ही यूजीसी के नैक द्वारा बी प्लस ग्रेड के साथ राज्य सरकार द्वारा सेंटर फार एक्सीलेंस की उपाधि पा चुके ओबरा पीजी कालेज को लेकर किसी ने भी नहीं सोचा होगा कि ऐसा दिन भी आएगा, जब यहां 80 फीसद तक शिक्षकों की कमी हो जाएगी। भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) ने भी इस कालेज को अपना केंद्र घोषित कर देश के सबसे पिछड़े जनपद को बड़ी उपलब्धि दी थी लेकिन प्रदेश की राजधानी से दूर यह कालेज तमाम उपलब्धियों के बावजूद आज हाशिये पर है। जिले की राजनीति को धुरंधर नेता दे चुके ओबरा पीजी कालेज को लेकर वर्तमान में राजनीतिक शून्यता ने भी कालेज के अस्तित्व को चोट पहुंचाई है। पीजी की मान्यता के 20 वर्ष बाद भी शिक्षकों की नियुक्ति नहीं

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वर्ष 1999 में ओबरा पीजी कालेज को पीजी कला और विज्ञान की मान्यता मिली थी लेकिन 20 वर्ष बीत जाने के बावजूद आज तक पीजी के शिक्षकों का पद सृजन नहीं किया गया। गत दो दशकों से यहां के पीजी के छात्र किस तरह बिना शिक्षक के अपनी पढ़ाई पूरी कर रहे हैं उसका अंदाजा लगाया जा सकता है। अब अगले सत्र से पीजी में वाणिज्य संकाय भी खुलने वाला है, जबकि वाणिज्य शिक्षकों का पद भी अभी सृजित नहीं हुआ है। जिस कालेज में शिक्षकों की संख्या 60 से ज्यादा होनी चाहिए वहां वर्तमान में मात्र 14 शिक्षक कार्यरत हैं। इनमें भी तीन से ज्यादा शिक्षकों का जल्द ही स्थानांतरण होने वाला है। ऐसे में नए शिक्षा सत्र में शिक्षा के स्तर का अंदाजा लगाया जा सकता है। लगभग 3000 छात्रों वाले कालेज के स्नातक और स्नातकोत्तर में कई संकाय के शिक्षकों की भारी कमी है। स्नातक स्तर पर प्राणी विज्ञान, भौतिक विज्ञान एवं अंग्रेजी का कोई शिक्षक नहीं है। नियमानुसार स्नातक में प्रति विषय 2-2 तथा स्नातकोत्तर में प्रति विषय 3-3 शिक्षक होने चाहिए लेकिन फिलहाल ऐसी स्थिति कब होगी यह भविष्य के गर्त में है। कई वर्षों से पुस्तकालय बंदी की स्थिति में

कालेज के छात्रों के लिए महत्वपूर्ण पुस्तकालय में कई वर्षों से पुस्तकालय अध्यक्ष सहित कोई कर्मचारी नहीं है। जिसके कारण कालेज प्रशासन को वैकल्पिक व्यवस्था करके पुस्तकालय संचालित करना पड़ रहा है। पुस्तकालय में पुस्तकालय अध्यक्ष सहित चार स्टाफ का पद सृजित हैं। शिक्षक कर रहे बाबू का काम

किसी भी उच्च शिक्षा केंद्र में कार्यालय स्टाफ की भूमिका काफी महत्वपूर्ण होती है। ओबरा पीजी कालेज की बद्दतर हालत का अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि यहां कुल सृजित 17 पद के सापेक्ष मात्र दो कर्मचारी ही हैं। हालत यह है कि कालेज के शिक्षक कार्यालय स्टाफ का कार्य कर रहे हैं। छात्रावास हुआ जर्जर

कालेज परिसर में समाज कल्याण विभाग द्वारा अनुसूचित जाति व जनजाति के लिए बनाया गया छात्रावास पूरी तरह जर्जर हालत में है। छात्रावास की खस्ता हालत ने उच्च शिक्षा केंद्रों के प्रति संवेदनहीनता को चरितार्थ किया है। जहां इसके सभी कमरों में पानी टपक रहा है वहीं इसके अंदर की हालत डरावनी फिल्मों जैसी हो गई है। इसके सभी कमरों की खिड़कियां और दरवाजे टूटी हालत में हैं। शौचालय की हालत को बयां भी नहीं किया जा सकता है। लगातार किया जा रहा पत्राचार: प्राचार्य

शिक्षकों की बाबत कालेज के प्राचार्य डा. आइबी ¨सह ने बताया कि शिक्षकों की कमी को लेकर उच्च शिक्षा निदेशालय को पिछले वर्षो से लगातार पत्राचार किया जा रहा है। इस वर्ष कुछ वरिष्ठ शिक्षकों का प्रमोशन होने के बाद शिक्षकों की कमी में और इजाफा हुआ है। कहा कि शिक्षकों की कमी होने के कारण कक्षाएं चलाना मुश्किल हो गया है। इसके अलावा कार्यालय स्टाफ की कमी से भी भारी दिक्कतें हो रही है।


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