विनाशकारी पालीथिन ने हर घर की रसोई तक बनाई पैठ
जागरण संवाददाता, सोनभद्र: हमारे देश में पालीथिन का प्रयोग लगभग ढाई दशक पूर्व से होना ज्यादा प्रारंभ हुआ।
जागरण संवाददाता, सोनभद्र: हमारे देश में पालीथिन का प्रयोग लगभग ढाई दशक पूर्व से होना ज्यादा प्रारंभ हुआ। बाजार से सामान लाने के लिए घर से थैला लेकर न जाना, पालीथिन में रखे सामानों का न भींगना सहित कई प्रकार से उपयोगी होने के कारण जल्द ही इसका प्रचलन तेजी से बढ़ने लगा। हालांकि प्रारंभ से ही इसके दुष्परिणाम सामने आने लगे थे, मगर जब तक कोई कुछ समझ पाता। तब तक तो पालीथिन ने हर घर की रसोई तक अपनी धमक बना ली। पालीथिन का प्रयोग वर्तमान में लोगों की आदतों में शुमार हो चुका है। आज स्थिति यह है कि पालीथिन का प्रयोग बंद करने के लिए सरकार द्वारा नीतियां, योजना व शासनादेश तक जारी किये जा रहे हैं। इसके बाद भी इस पर प्रतिबंध लगता नहीं दिख रहा है।
जानकारों का कहना है कि पालीथिन के दूरगामी दुष्परिणाम को देखते हुए इसका प्रयोग रोकने के लिए सिर्फ शासन-प्रशासन की कवायद नाकाफी साबित होगी। इसके लिए जन-जन को अलख जगानी होगी। प्रत्येक व्यक्ति को पालीथिन का किसी भी स्थिति में प्रयोग न करने के प्रति ²ढ़ संकल्प लेना होगा। शासन द्वारा भी वैधानिक कार्रवाई करने के साथ ही व्यापक जनजागरण करना चाहिए। सीएम द्वारा 15 जुलाई तक हरहाल में शहर को पालीथिन मुक्त करने के सख्त निर्देश दिये गये हैं। इसके अनुपालन में प्रशासन द्वारा कार्रवाई भी प्रारंभ कर दी गई है। इसके बाद भी जब तक आम नागरिक सचेत नहीं होंगे। इस पर प्रभावी अंकुश लगने में संदेह जताए जा रहे हैं। दुकानों से पालीथिन किया गया जब्त
घोरावल (सोनभद्र): घोरावल कस्बे में तहसील प्रशासन द्वारा पालीथिन प्रतिबंध को लेकर सब्जी, किराना और जनरल स्टोर की दुकानों की जांच की गई। मौके पर दुकानों में मौजूद पालीथिन को जब्त कर लिया गया। एसडीएम राजकुमार ने बताया कि अभियान के पहले दिन कस्बे में 20 दुकानों पर जांच की गई। इस दौरान 11 दुकानों पर जुर्माना भी लगाया गया। एसडीएम ने बताया कि शासन की मंशा के अनुरूप 15 जुलाई से पालीथिन का प्रयोग कदापि नहीं होनी चाहिए। तहसीलदार विकास कुमार पांडेय ने दुकानदारों से खाने की वस्तुएं पालीथिन की बजाय कागज के बने छोटे थैले में देने का सुझाव दिया। इस मौके पर कोतवाली प्रभारी मूलचंद चौरसिया, नगर पंचायत कर्मचारी संजय मौजूद रहे। पालीथिन बंद होने से मिट्टी के बर्तनों के बहुरेंगे दिन
महुली (सोनभद्र): पालीथिन के बढ़ते प्रयोग ने वैवाहिक व अन्य समारोहों से मिट्टी के बर्तनों को पूरी तरह से बेदखल कर दिया। मिट्टी के बर्तनों के प्रयोग से न सिर्फ पर्यावरण सुरक्षित रहता था, बल्कि इसमें पका भोजन स्वादिष्ट और स्वास्थ्य के लिहाज से भी उत्तम था। इससे गांवों के मिट्टी उद्योग के संरक्षण के साथ ही कुम्हारों का भी सहजता से जीविकोपार्जन होता था। प्लास्टिक ने यह सबकुछ समाप्त कर दिया था। पालीथिन का प्रयोग बंद हो जाने के बाद फिर से मिट्टी का बर्तनों के दिन बहुरने की उम्मीद जताई जा रही है। मिट्टी के बर्तनों का उपयोग पानी पीने, घरों में दाल पकाने, दूध गर्म करने, दही जमाने, चावल बनाने और अचार रखने के लिए होता था। ग्रामीणों का कहना है कि मिट्टी के बर्तन में भोजन धीरे-धीरे पकता है। महुली निवासी शंकर प्रजापति ने बताया कि चाक पर बर्तन बनाकर हम लोग परिवार का गुजर-बसर करते थे लेकिन अब प्लास्टिक के उपयोग ने हमारी उपयोगिता कम कर दी है। ऐसे ही रहा तो आने वाली पीढ़ी मिट्टी का बर्तन बनाना ही भूल जाएगी।