हंगामे भरा रहा है ओबरा पीजी कालेज का छात्रसंघ इतिहास
जागरण संवाददाता, ओबरा (सोनभद्र) : हंगामेदार छात्रसंघ चुनाव के लिए चर्चित ओबरा पीजी कालेज मे
जागरण संवाददाता, ओबरा (सोनभद्र) : हंगामेदार छात्रसंघ चुनाव के लिए चर्चित ओबरा पीजी कालेज में पुन: छात्रसंघ चुनाव को लेकर बिगुल बज चुका है। वर्ष 2003 में स्थापित किये गए छात्रसंघ के चुनाव शुरू से ही जिला प्रशासन के लिए सिरदर्द बनता रहा है लेकिन ओबरा पीजी कालेज के छात्रसंघ चुनाव के अतीत पर नजर डाला जाय तो कई ऐसे पहलू सामने आते हैं। लोकतंत्र की प्रथम पाठशाला कहे जाने वाले छात्रसंघ की महत्वपूर्ण भूमिका सामने आती है।
वर्ष 2003 में स्थापित छात्रसंघ ने कई बड़े छात्र आंदोलनों की नींव डाली। ओबरा पीजी कालेज के छात्रों ने छात्रसंघ के माध्यम से शासन-प्रशासन को छात्रहित में कई फैसले लेने को मजबूर किया। वर्ष 2003, 2004 व 2005 में हुए कई छात्र आंदोलन उस वर्ष जनपद की सबसे बड़ी सुर्खियां बनीं। खासकर छात्रनेता विजय शंकर का आत्मदाह का प्रयास, आदिवासी गांव से आये अनिल यादव (वर्तमान में जिला पंचायत अध्यक्ष) का पहला छात्रसंघ अध्यक्ष बनने जैसी घटनाओं ने ओबरा पीजी कालेज को छात्र राजनीति का केंद्र बनाये रखा।
वर्ष 2006-07 में छात्रसंघ अध्यक्ष बने नीरज भाटिया की टीम को उस समय आई नैक की टीम ने सबसे युवा छात्रसंघ माना था। उसी वर्ष नैक ने ओबरा पीजी कालेज को बी प्लस ग्रेड भी दिया था। इसके अलावा उत्तर प्रदेश शासन द्वारा महाविद्यालय को सेंटर फॉर एक्सीलेंस की उपाधि से नवाजा था। इसके साथ ही इसरो ने इसे अपना केंद्र बनाया था लेकिन उसके बाद लगातार पांच वर्षों तक छात्रसंघ चुनाव न होने के कारण महाविद्यालय में छात्र राजनीति शून्यता की स्थिति में पहुंच गई।
हालत यह हुई की कई उपलब्धियों के बाद भी यहां सेंटर फॉर एक्सीलेंस के तहत न तो रोजगार पाठ्यक्रम शुरू किये गए और न ही इसरो केंद्र का संचालन सही से हो पाया। बहरहाल प्रदेश में सत्ता परिवर्तन के बाद पुन: 2013-14 में छात्रसंघ चुनाव शुरू हुए। जिसमें वर्ष 2014-15 के लिए हुए चुनाव में एक वोट से जीत-हार का फैसला भी प्रशासन के लिए चुनौती भरा रहा। सभी चुनाव में कई थानों की पुलिस के साथ पीएसी की मौजूदगी इसके संवेदनशीलता को साबित करती है।
ओबरा पीजी कालेज में छात्र राजनीति का इतिहास इसके स्थापना के दौर से रहा है। इसीलिए महाविद्यालय की छात्र राजनीति से उभरे सदर विधायक भाजपा नेता भूपेश चौबे, सोनांचल संघर्ष वाहिनी के मुखिया अधिवक्ता रोशन लाल यादव, पूर्व सांसद नरेंद्र कुशवाहा व विजय शंकर यादव जैसे पूर्व छात्र नेताओं द्वारा खींची गयी लकीरें आज भी दिखती हैं।