किफायती बिजली का दावा फेल
ओबरा (सोनभद्र): केंद्र व राज्य सरकारों के 2019 तक सबको किफायती दाम पर बिजली मुहैया कराने के दावे
ओबरा (सोनभद्र): केंद्र व राज्य सरकारों के 2019 तक सबको किफायती दाम पर बिजली मुहैया कराने के दावे पर सवाल उठाया गया है। आल इंडिया पावर इंजीनियर्स फेडरेशन ने कहा है कि निजी घरानों पर अतिनिर्भरता के चलते सबको किफायती दर पर बिजली उपलब्ध कराने का दावा कामयाब नहीं हो सकता है। इस कारण पारेषण क्षमता में कमी और महंगी बिजली खरीदने में अक्षम बिजली वितरण कंपनियां इस मुहिम की सबसे बड़ी बाधा है। फेडरेशन ने सबको किफायती दाम पर बिजली मुहैया कराने हेतु ऊर्जा नीति में बदलाव की मांग की है।
आल इंडिआ पावर इंजीनियर्स फेडरेशन के चेयरमैन शैलेंद्र दुबे ने बताया कि देश में बिजली की कुल उत्पादन क्षमता तीन लाख मेगावाट से अधिक है, जबकि अधिकतम मांग 147000 मेगावाट ही है फिर भी 30 करोड़ लोग बिजली से वंचित हैं और उत्तर प्रदेश जैसे अनेक प्रांतों में लोगों को बिजली कटौती झेलनी पड़ती है। इसका मुख्य कारण निजी घरानों पर अति निर्भरता की गलत ऊर्जा नीति और बिजली उपलब्ध होते हुए भी एक क्षेत्र से दूसरे क्षेत्र में बिजली पहुंचाने में पारेषण क्षमता की भारी कमी है। उन्होंने बताया कि केंद्रीय विद्युत प्राधिकरण के अनुसार चालू वित्तीय वर्ष में देश में 1.1 प्रतिशत अधिक बिजली उपलब्ध होगी ¨कतु पश्चिमी क्षेत्र से उत्तरी क्षेत्र में बिजली पारेषण की पर्याप्त क्षमता के न होने के कारण उत्तरी क्षेत्र में अतिरिक्त बिजली नहीं लाई जा सकेगी और उत्तरी क्षेत्र में बिजली संकट बना रहेगा। उत्तरी क्षेत्र में पंजाब और हरियाणा में सरप्लस बिजली होते हुए भी निजी घरानों की काफी महंगी बिजली खरीद पाने में असमर्थ उत्तरी क्षेत्र के उत्तर प्रदेश जैसे प्रांत बिजली संकट का सामना करने को विवश हैं। देश में उपलब्ध तीन लाख दो हजार मेगावाट उत्पादन क्षमता में निजी घरानों की क्षमता 124000 मेगावाट, राज्य सरकारों की एक लाख मेगावाट और केंद्रीय क्षेत्र की 76 हजार मेगावाट है। अकेले पश्चिमी क्षेत्र में निजी घरानों की क्षमता 56 हजार मेगावाट होने से यहां बिजली सरपलस है ¨कतु पारेषण क्षमता में कमी के चलते और वितरण कंपनियों की काफी महंगी बिजली खरीद पाने में असमर्थता के चलते इस बिजली का उपयोग नहीं हो पा रहा हैं। उन्होंने कहा कि गलत ऊर्जा नीति के चलते एक ओर उत्तर प्रदेश सहित देश के 18 प्रांत बिजली संकट से ग्रस्त हैं तो दूसरी ओर 26 हजार मेगावाट क्षमता के बिजली घर वितरण कंपनियों की महंगी खरीद क्षमता न होने के कारण बंद पड़े हैं। यदि सही मायने में सबको किफायती दर पर बिजली उपलब्ध कराने की योजना को सफल बनाना है तो केंद्र और राज्य सरकारों को निजी घरानों पर अतिनिर्भरता की नीति बदलनी होगी और मौजूदा उत्पादन क्षमता का पूरा उपयोग करने हेतु अंतरराज्यीय पारेषण क्षमता बढ़ानी होगी।