18 किलो वजन, 13 किलो का बैग
सीतापुर : सार्थक वर्मा कक्षा एक का छात्र है, शनिवार सुबह स्कूल के गेट पर वह ऑटो से उतरता है। ऑटो ड्र
सीतापुर : सार्थक वर्मा कक्षा एक का छात्र है, शनिवार सुबह स्कूल के गेट पर वह ऑटो से उतरता है। ऑटो ड्राइवर उसे करीब 13 किलो का स्कूल बैग थमाता है। महज 18 किलो वजन के सार्थक के हाथ में बस्ते के आते ही वह एक झटके में इतना झुक जाता है कि बैग उसके घुटनों के नीचे तक आजा है। वह काफी मशक्कत कर पहले खुद को और फिर अपने बस्ते को जमीन पर गिरने से बचाता है। यह छात्र तो महज बानगी है, हमारी शिक्षा व्यवस्था और निजी स्कूलों के प्रत्येक नौनिहाल का हाल कुछ ऐसा ही है। नन्हीं उम्र बस्ते का भारी बोझ उठाने में सक्षम नहीं हैं। स्कूल के गेट से कक्षा तक हर एक बच्चा इसी तरह लड़खड़ाते और हांफते पहुंचता है।
शहर के विभिन्न निजी स्कूलों में पढ़ने वाले पांच से 12 वर्ष की आयु वर्ग के बच्चे भारी भरकम बस्ता लेकर स्कूल जा रहे हैं। चिकित्सकों का कहना है कि ऐसे बच्चों में पीठ दर्द और तनाव का खतरा ज्यादा होता है। जिला चिकित्सालय के अधीक्षक व आर्थो सर्जन डॉ. एनके त्रिपाठी कहते हैं कि अधिक भार ढोने से पीठ, कमर और कंधे के दर्द की समस्या के साथ ही रीढ़ की हड्डी में भी दर्द हो सकता है। लगातार भारी बस्ता ढोने से बच्चे की मांसपेशियों और कंकाल तंत्र पर बुरा प्रभाव पड़ता है। गर्दन के पास ¨खचाव की समस्या हो सकती है। वह बताते हैं कि देश के कुछ महानगरों में हाल ही में हुए एक सर्वेक्षण के अनुसार करीब 82 फीसदी बच्चे अपनी पीठ पर अपने वजन का करीब 35 फीसदी भार ढोते हैं। भारी स्कूल बैग के कारण बच्चों पीठ की समस्या बढ़ जाती है, जो अकसर उम्र के साथ और बढ़ती जाती है। वह बताते हैं कि इसी के चलते स्कूली बच्चे और्थोपेडिक समस्याओं की चपेट में आ रहे हैं।