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खेतों तक पहुंची चुनावी हलचल

By Edited By: Published: Sun, 20 Apr 2014 12:42 AM (IST)Updated: Sun, 20 Apr 2014 12:42 AM (IST)
खेतों तक पहुंची चुनावी हलचल

सीतापुर : अभी चुनाव में वोट मांगने के लिए नेताओं में नहर के मुहल्लों, देहात की बाजारों व गांवों में जाना पड़ता था, लेकिन इस बार उन्हें कुछ ज्यादा ही मशक्कत करनी पड़ रही है। नेताजी इस बार खेत खलिहानों में हाथ जोड़े नजर आ रहे हैं।

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दर असल यह लोकसभा चुनाव का दौर ऐसे वक्त पर आया है। जब किसानों के खेतों में गेहूं, सरसों की फसलें बिल्कुल तैयार खड़ी हैं। जिसकी वजह से गांव में रहने वाले किसान भोर होते ही खेतों की ओर रुख कर लेते हैं। उन्हें चिंता है गेहूं की कटाई व मड़ाई की। जिले की सीमा पर बसे थानगांव थाना क्षेत्र के ग्राम शंकरपुर निवासी राजेंद्र प्रसाद कहते हैं कि उनके पास 40 बीघा खेत है। इस खेत में गेहूं की फसल तैयार खड़ी है। जिसकी वजह से वे फसल का दाना घर पहुंचाने के लिए रात एक किए हुए हैं। जितनी जल्द गेहूं कटकर मड़ाई हो जाए। उतनी जल्दी ही उन्हें फुर्सत मिले। रेउसा क्षेत्र के ग्राम सिकरिया निवासी तेज नारायन के पास 55 बीघा, तंबौर क्षेत्र के गोविंदापुर निवासी रामजीवन ने 30 बीघा व बैरागीपुर निवासी अनिल मिश्रा के खेत में 30 बीघा गेहूं की फसल तैयार खड़ी है। किसान बताते हैं कि पहले गेहूं की फसल काटी है। उसके बाद खलिहान में लगा रखी है। जिससे किसान खेत व खलिहान दोनों जगह व्यस्त है। गांव में इक्का दुक्का लोग ही अपने घरों पर बच रहे हैं। ऐसे में वोट मांगने के लिए नेताजी जब गांव पहुंच रहे हैं, तब उन्हें गांव में सन्नाटा पसरा मिलता है। नतीजा नेता जी व उनके समर्थक सीधे खेतों व खलिहानों का रुख कर रहे हैं। एक नेता जी पहुंचकर जैसे ही निकलते हैं, दूसरे वहां पहुंचकर किसानों से वोट मांगने लगते हैं। हालत यह है कि खेत के जो पगडंडियां सूनी रहती थी व नेताओं के कदमों की आहट है। जिन गलियारों पर बैलगाड़ी, ट्रैक्टर व डनलप चलते थे। वहां आज लग्जरी गाड़ियां धूल उड़ाती फिर रहीं हैं। चुनाव की चिंता में डूबे नेता व उनके समर्थक देर रात रात तक गांव के खलिहानों ने अपना वक्त गुजार रहे हैं। इस दौरान वे किसानों की चटनी रोटी व दूध तथा शर्बत पीने से भी परहेज नही कर रहे हैं। जिले के कई प्रत्याशी व उनके समर्थक खुद स्वीकारते हैं कि उन्हें इस बार अधिक मशक्कत करनी पड़ रही है। उन्होंने इस बात को स्वीकारा है कि वोटरों के गांव में न मिलने के कारण उन्हें आजकल खेत व खलिहान के चक्कर लगाने पड़ रहे हैं।


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