अच्छे-बुरे का ज्ञान कराता है हृदय रूपी दर्पण
सिद्धार्थनगर : मानव का हृदय एक दर्पण के समान होता है। वह सदैव उसको अच्छे-बुरे का बोध कराता है। इसलि
सिद्धार्थनगर : मानव का हृदय एक दर्पण के समान होता है। वह सदैव उसको अच्छे-बुरे का बोध कराता है। इसलिए कोई भी कार्य करने से पहले उसके सभी पहलुओं पर गंभीरता से विचार अवश्य कर लेना चाहिए।
उक्त बातें महामंडलेश्वर उमाकांतानंद सरस्वती जी महराज ने कही। वह शनिवार को पुरानी सब्जी मंडी परिसर में आयोजित रामकथा के अंतिम दिन श्रद्धालुओं को अपने अमृत वचनों से अभि¨सचित कर रहे थे। कहा कि जीवन में अच्छा कार्य करने के लिए युवावस्था ही सबसे उपयुक्त होती है। क्योंकि जब मानव की उम्र ढलने लगती है तो वह चाहकर भी कुछ नहीं कर सकता है। इसलिए अच्छे कर्मों में देर नहीं करनी चाहिए। युवा पीढ़ी अपने प्रयासों से दुनिया को आश्चर्यचकित कर सकती है। तमाम वैज्ञानिकों ने युवावस्था में ही अपने शोध द्वारा दुनिया को एक नई दिशा दी। 17 वर्ष की आयु में सिकंदर विश्व विजय के लिए निकला था। 16 वर्ष की उम्र में शिवाजी ने तोरण दुर्ग पर अपनी विजय पताका फहरा दिया था। महज 34 वर्ष की आयु में स्वामी विवेकानंद ने पूरे विश्व में भारत का सिर गर्व से ऊंचा कर दिया था। इससे प्रमाणित होता है कि सच्चे मन से किया गया प्रयास हमेशा सार्थक होता है। इसी तरह यदि सच्चे मन से ईश्वर को याद करेंगे, तो वह आपके पास ही मौजूद मिलेंगे। डा. सुरेंद्र मिश्रा, दीनानाथ शुक्ल, मुरलीधर अग्रहरि, राजेश दूबे, घनश्याम जायसवाल, फतेह बहादुर ¨सह, विनीत ¨सह, बालमुकुंद खेतान, गो¨वद माधव, सोनू टिबड़ेवाल, सरदार प्रसाद द्विवेदी, साधना श्रीवास्तव, सीमा गुप्ता, शशी श्रीवास्तव, प्रतिमा जायसवाल, साक्षी गुप्ता, मुस्कान गुप्ता, पुष्पा देवी, अंजली यादव, नीला ¨सह, मीरा ¨सह, पूजा गुप्ता, रीना कसौधन, राधिका गुप्ता, दर्गेश मद्धेशिया, संजय कसौधन, शेषराम गौड़, राणा प्रताप ¨सह सहित तमाम लोग मौजूद रहे।