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मुस्लिम महिलाओं के हक में हाईकोर्ट का फैसला

सिद्धार्थनगर : तलाक, तलाक, तलाक। इन तीन शब्दों ने जिला मुख्यालय की तस्नीम की ¨जदगी छिन्न-भिन्न कर द

By Edited By: Published: Thu, 08 Dec 2016 10:32 PM (IST)Updated: Thu, 08 Dec 2016 10:32 PM (IST)
मुस्लिम महिलाओं के हक में हाईकोर्ट का फैसला

सिद्धार्थनगर : तलाक, तलाक, तलाक। इन तीन शब्दों ने जिला मुख्यालय की तस्नीम की ¨जदगी छिन्न-भिन्न कर दी। ढाई वर्ष के दिव्यांग बेटे व 6 माह की जोहा के साथ वह हक की लड़ाई लड़ रही है। तमाम कोशिशों के बावजूद वह खुद को अकेला पा रही है। ऐसे में इलाहाबाद हाईकोर्ट की टिप्पणी ने उसे बड़ी राहत दी है। हाईकोर्ट ने ट्रिपल तलाक को असंवैधानिक करार दिया है। कोर्ट ने कहा है कि इससे मुस्लिम महिलाओं के अधिकारों का हनन होता है। उसका कहना है कि न्यायालय ने एक बड़ा कदम उठाया है। यदि यह फैसला आता है तो उसके समेत तमाम महिलाओं की ¨जदगी बर्बाद होने से बच जाएगी।

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तस्नीम यहां अब्दुल्ला कालोनी में अपने मायके में हैं। सउदी अरब से पति मो.फरीद ने गत 24 जून को उन्हें वाट्सएप पर तलाक दे दिया था। तबसे वह थाने से लेकर हर उस दरवाजे का चक्कर काट चुकी हैं, जहां से बिगड़ी बात बनने की उम्मीद थी। बावजूद इसके अभी तक ¨जदगी किसी ट्रैक पर नहीं आ सकी। ऐसे में हाईकोर्ट की टिप्पणी उनके लिए किसी बड़ी ताकत से कम नहीं है। वह कहती हैं कि हाईकोर्ट ने जो कुछ भी कहा है कि कुरान उसी का हिमायती है। कुरान में कहीं भी तीन तलाक को जायज नहीं ठहराया गया है। कुछ लोग इसकी गलत व्याख्या कर रहे हैं। हाईकोर्ट के निर्णय से महिलाओं की हित रक्षा होगी। तस्नीम के पिता रिजवानुल हक का कहना है कि हाईकोर्ट का फैसला स्वागत योग्य है। कुरान मुस्लिमों का सबसे पवित्र ग्रंथ है। उसे ध्यान में रखकर हाईकोर्ट ने टिप्पणी की है। इससे मुस्लिम महिलाओं को लाभ मिलेगा। उनकी हितरक्षा होगी। हाईकोर्ट के इस कदम की हर तरफ सराहना होनी चाहिए। हाईकोर्ट ने मुस्लिम पर्सनल ला बोर्ड को लेकर भी टिप्पणी की है और कहा है कि कोई भी पर्सनल ला बोर्ड संविधान से ऊपर नहीं है। कोर्ट के इस फैसले के बाद मुस्लिम महिलाओं के लिए एक आशा की किरण जगी है। बद्र चिल्ड्रेन स्कूल के ¨प्रसिपल अब्दुल मन्नान खान का कहना है कि इसे लेकर लोगों की अपनी-अपनी सोच है। एक झटके से तलाक, तलाक, तलाक कहकर किसी की ¨जदगी बर्बाद करना उचित नहीं है। कुरान में तलाक के लिए अलग गाइड लाइन दी गयी है। तीन बार तलाक कहने के लिए कम से कम तीन माह का वक्त होना चाहिए और यह किसी को भी शरीयत के अनुसार ही दिया जा सकता है। एक झटके में तीन तलाक का समर्थन उनकी मजलिस नहीं करती।


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