साहब, यहां भी स्कूलों में कम नहीं है बस्तों का बोझ
कुशीनगर: पाठ्यक्रम और पुस्तक निर्धारण का कोई निर्धारित मानक न होने से नौनिहालों के बस्ते का बोझ दिन-
कुशीनगर: पाठ्यक्रम और पुस्तक निर्धारण का कोई निर्धारित मानक न होने से नौनिहालों के बस्ते का बोझ दिन-प्रतिदिन बढ़ता ही जा रहा है। अमूमन हर रोज नर्सरी से लेकर आठवीं तक के बच्चों को पांच से सात किग्रा तक का बोझ उठाना पड़ता है। बच्चों को रोजाना तकलीफ पहुंचाने वाली इस समस्या को लेकर न तो विद्यालय प्रशासन सजग नजर आ रहा न ही सरकार। बस्ते के बोझ को लेकर लंबे दिनों से बहस चल रही पर इस दिशा में अब तक कोई स्पष्ट निर्णय सामने नहीं आ सका है। बच्चों पर बस्ते का बढ़ता बोझ शारीरिक प्रभाव डालने वाला है तो वहीं अक्सर इसके चलते बच्चों के बीमार पड़ने की बात भी सामने आती है। हालांकि बेसिक शिक्षा विभाग का दावा है कि इसे लेकर कवायद शुरू है। विभाग के अनुसार परिषदीय स्कूलों में पढ़ने वालों बच्चों को तीन भागों में विभाजित कर उनमें बस्ता उपलब्ध कराने की व्यवस्था चल रही है। इसके तहत बच्चों की अलग-अलग ग्रे¨डग की गई है। नई योजना के तहत कक्षा एक से तीन तक पढ़ने वाले बच्चों में छोटा, तीन से पांचवीं कक्षा में पढ़ाई करने वाले बच्चों को मझले तथा कक्षा पांच से आठवीं तक के बच्चों को बड़े साइज का बस्ता मुहैया कराया जाएगा। हालांकि विभागीय इस व्यवस्था को जमीनी रुप देने में अभी देर है पर व्यवस्था शुरू हो जाने से बच्चों को कुछ राहत मिलेगी। यह उम्मीद अभिभावकों को जरूर है। बस्ते की बोझ को लेकर छिड़ी बहस के बीच जागरण ने रामकोला रोड स्थित एक प्रसिद्ध निजी स्कूल के कक्षा छठवीं के बच्चों से बात की तो नाम न छापने की शर्त पर बच्चों ने बताया कि हमें रोजाना आठ विषयों की 16 किताबें स्कूल ले जानी पड़ती है। कई बार तो किताबों की संख्या बढ़कर 18 से 20 तक हो जाती है। जिसका वजन पांच से सात किलोग्राम तक का होता है। वहीं दूसरी मंजिल पर स्थित कक्षा तक ले जाने में यह तकलीफ और बढ़ जाती है। कुशीनगर में तकरीबन तीन हजार एक सौ परिषदीय विद्यालय हैं, तो निजी विद्यालयों की संख्या भी इससे कम नहीं है। जिसमें लगभग आठ लाख से अधिक बच्चे शिक्षा हासिल करते हैं। बीएसए लालजी यादव कहते हैं कि बच्चों के बस्तों का बढ़ता बोझ एक गंभीर समस्या है, परिषदीय स्कूलों में इसे लेकर कवायद शुरू है। उम्मीद है कि शीघ्र ही इसका परिणाम सामने होगा।