सताने लगी खराब नलकूपों की ¨चता
सिद्धार्थनगर : दो दशक पूर्व ¨सचाई के सबसे बड़े विकल्प के रूप में स्थापित हुए नलकूपों की हालत दिन-ब द
सिद्धार्थनगर : दो दशक पूर्व ¨सचाई के सबसे बड़े विकल्प के रूप में स्थापित हुए नलकूपों की हालत दिन-ब दिन बदतर होती जा रही है। कहीं यांत्रिक गड़बड़ी तो कहीं विद्युत दोष से कई नलकूप वर्षों से बंद हैं। अब तो बनी नालियां भी जमींदोज हो चुकी जिसकी ¨चता किसानों को फिर सताने लगी है।
प्राकृतिक आपदाओं से घिरे किसानों को अब अगली खेती के फिक्र होने लगी है। वह इसकी तैयारी में जहां लगे है वहीं नलकूपों की खराबी से उनके माथे पर बल पड़ रहा है। खेती की शुरुआत तभी संभव है जब उन्हें पानी मिले, पर बंद नलकूपों से यह संभव नहीं दिख रहा। गरीब किसानों के सामने नलकूप ही एक सहारा है जो विभाग की उदासीनता से दम तोड़ चुका है। मिठवल विकास क्षेत्र में कुल एक दर्जन से अधिक नलकूप स्थापित हैं। इनमें से अधिकांश तो विगत पांच वर्षों से बंद हैं। कुछ जो चलते भी हैं तो टूटी नालियां अवरोध उत्पन्न करती हैं। सभी नलकूप अब किसानों के लिए बेमतलब ही साबित हो रहे हैं। क्षेत्र के ग्राम गौरा में लगा नलकूप यांत्रिकी खराबी के कारण एक वर्ष से बंद पड़ा है। इससे गई नालियां भी धराशायी हो चुकी हैं। जबकि इस पर गौरा सहित पांच गांवों बलुवा, गौरी, कटसरई व बटयापुर गांव की ¨सचाई का भार है। बरगदी में लगे नलकूप की नालियों को लोगों ने अपने खेतों में मिला कर इसका अस्तित्व ही समाप्त कर दिया है। इसी प्रकार करही शुक्ल में लगा नलकूप कब धराशायी हो जाये कुछ कहा नहीं जा सकता है। केरमुवा, बानकुईयां में लगे नलकूपों की नालियां अब समाप्त हैं। क्षेत्र के किसान राम समुझ गुप्ता नन्हें लाल श्रीवास्तव, इंद्रजीत गुप्ता, बबलू व विरेन्द्र श्रीवास्तव का कहना है कि बाबू अब गांव-गांव में खड़े सभी नलकूप सिर्फ हाथी दांत हैं। इस बार भगवान भी नाराज था और अब यह नलकूप भी दगा देंगे। मंहगाई इस कदर है कि किराये के पंप सेट से खेती करना कहां संभव है। फसल अच्छी नहीं हुई तो कर्ज का पैसा मेहनत मजदूरी करके ही चुकाना पडे़गा।