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सलाना 50 लाख खर्चकर कमाता है मात्र 70 हजार

सिद्धार्थनगर : उद्यान विभाग के कारनामे भी अजीब हैं। नफा-नुकसान से इसका कोई सरोकार नहीं है। बुद्ध क

By Edited By: Published: Mon, 09 May 2016 11:37 PM (IST)Updated: Mon, 09 May 2016 11:37 PM (IST)
सलाना 50 लाख खर्चकर कमाता है मात्र 70 हजार

सिद्धार्थनगर : उद्यान विभाग के कारनामे भी अजीब हैं। नफा-नुकसान से इसका कोई सरोकार नहीं है। बुद्ध की धरा को हरा-भरा रखने को स्थापित इस विभाग की चारो नर्सरियों का हाल कुछ ऐसा ही है। इन पर प्रतिवर्ष आने वाली रखरखाव की लागत और विभागीय अधिकारियों एवं कर्मचारियों की तनख्वाह पर कुल मिलाकर लगभग 50 लाख रुपये व्यय होते हैं। इतना खर्च करने के बाद इन नर्सरियों से सलाना विभाग को लगभग 70 हजार रुपयों की आय होती है। वह भी तब जब सभी पौधे बिक जाएं।

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जनपद में उद्यान विभाग की कुल चार नर्सरियां स्थापित हैं। इनमें से सोनवल, गोबरहवा तथा बसडिलिया की नर्सरियां कार्यरत हैं जबकि डुमरियागंज की नर्सरी बंद पड़ी है। इस साल उसको भी चलाने की कवायद शुरु कर दी गई है। प्रत्येक नर्सरी का वार्षिक उत्पादन लक्ष्य तकरीबन 8-10 हजार पौधों का होता है। साल में इन नर्सरियों में कुल 35-40 हजार पौधे उगाए जाते हैं। उसी के अनुसार इनको बजट मिलता है। प्रति पौधा 28 रुपये की दर से इनका सालाना बजट लगभग 11 लाख रुपये होता है। विभाग में कार्यरत दर्जन भर से अधिक अधिकारियों/ कर्मचारियों की साल भर की तनख्वाह करीब 40 लाख रुपये है। कुल मिलाकर अगर देखा जाए तो इस हरियाली की वार्षिक लागत 50 लाख रुपयों से भी अधिक है। यदि इससे होने वाली आय का आंकलन किया जाए तो यह ऊंट के मुंह में जीरे की तरह है। नर्सरियों में तैयार पौधे 30 रुपये की दर से बेचे जाते हैं। यानि कि प्रति पौधा विभाग को दो रुपये की आय होती है। अर्थात यदि सभी पौधे बिक जाएं तो विभाग को 70-80 हजार रुपयों की आय हो जाएगी।

जबकि वास्तविकता यह है कि सभी पौधे बिक भी नहीं पाते हैं। बसडिलिया स्थित नर्सरी में अभी पिछले साल के ही आम, अमरूद, लीची, अनार आदि के सैकड़ों पौधे बचें हुए हैं। विभाग इन पौधों को इस साल निपटाने की तैयारी में है। हलांकि पौधे बच जाने पर पौधशाला प्रभारी से धन रिकवरी किए जाने का प्राविधान है, लेकिन हाल के वर्षों में इस तरह की कोई कार्रवाई नहीं हुई है। इतना धन खर्च होने के बावजूद भी पौधशालाएं बदहाल हैं। इसको देखते हुए यही लगता है कि जैसे विभाग को नफा-नुकसान से कुछ लेना-देना ही नहीं है।

बसडिलिया में पौधे बच जाते हैं। प्राइवेट नर्सरियां भी विभागीय पौधशालाओं को प्रभावित कर रही हैं। विभाग के लोग और भी काम करते हैं। केवल नर्सरियों के संचालन तक ही विभाग सीमित नहीं है। निदेशालय द्वारा प्राप्त निर्देशों के अनुसार हम और भी कई तरह की बागवानी एवं अन्य फसलों की खेती को प्रोत्साहित करते हैं।


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