आखिर कब तक चुप रहेंगे हम
, सिद्धार्थनगर : नदियों व जलाशयों के संवर्धन की दिशा में शासन-प्रशासन की उदासीनता भारी है। प्रशासनिक
, सिद्धार्थनगर : नदियों व जलाशयों के संवर्धन की दिशा में शासन-प्रशासन की उदासीनता भारी है। प्रशासनिक इच्छा शक्ति न होने के कारण संवर्धन का कार्य धरातल पर नहीं उतर सका। योजनाएं ही नहीं बनी तो मूर्त रूप क्या लेगी। नदियों, नालों को छोडिएं, गांवों में स्थापित तालाबों, जलाशयों में पानी की हकीकत काफी भयावह है। जिले में 5354 में से 4106 तालाबों व जलाशय सूखे पड़े हैं। मुख्यमंत्री जल बचाओं अभियान के तहत सिर्फ 697 तालाबों की ही खुदाई कर प्रशासनिक अमला पीठ थपथपा रहा है।
जिले के उत्तरी छोर पर अंग्रेजों के जमाने में स्थापित जमींदारी नहर प्रणाली के तहत मरथी, मझौली, सिसवा, बजहा, आदि 12 जलाशयों की हकीकत काफी बुरा है। गाद व सिल्ट से पटे होने के कारण गर्मी के दिनों में सूख गए हैं। इसके जीर्णोंद्धार के लिए हर वर्ष ¨सचाई विभाग का ड्रेनेज खंड प्रस्ताव शासन को बनाकर भेजता है, पर शासन-प्रशासन में बैठे जिम्मेदारों की इच्छा शक्ति क्षीण होने के कारण फाइलों में दबकर रह जाता है। लिहाजा जलाशयों व सागरों की दशा दिन ब दिन बुरी होती जा रही है। जहां तक मनरेगा के तहत गांवों में स्थापित तालाबों, पोखरों में जल भराव की बात है तो जिले में 5354 में सिर्फ 1248 में पानी से भरे हैं, शेष 4106 बिन पानी सब सून वाली कहावत को चरितार्थ कर रहे हैं। जल संरक्षण को बढ़ावा देने के लिए तालाब पोखरों के सुंदरीकरण के नाम पर सरकारी धन पानी की तरह बहाये गए, मगर उसके मूल उद्देश्य पर किसी ने कोई ध्यान नहीं दिया। प्रत्येक वर्ष ग्राम पंचायतों की कार्ययोजना में ऐसे ही कार्यों को चुना जाता है, लेकिन सरकारी उदासीनता के चलते शासन का प्रयास धरातल पर सफल नहीं हो सका। मनरेगा के तहत पिछले दस सालों में कोई ऐसा गांव नहीं बचा, जहां मनरेगा द्वारा तालाब, पोखरों की खुदाई/सुंदरीकरण का कार्य न कराया गया हो। पिछले साल इटवा ग्राम पंचायत में तालाब की जेसीबी मशीन से खुदाई करा जहां मनरेगा मजदूरों का हक मारा गया, वहीं सरकारी धन का खूब बंदरबांट किया गया। वर्तमान में जल संरक्षण की दुहाई देने वाले जिम्मेदारों को आइना दिखाने का काम कर रहा है। ग्राम पंचायत बंदुवारी व मसजिदिया में तालाब की सुंदरीकरण के नाम पर लाखों रुपये खर्च कर दिया, मगर पानी के अभाव में बच्चे उसे क्रिकेट स्टेडियम के रूप में प्रयोग कर रहे हैं।
.......बिना जल के कैसे बचेगा जीवन
पर्यावरणविद डा. वीसी श्रीवास्तव का कहना है कि लगातार गिर रहा भूगर्भ जल का स्तर पूरे समाज के लिए ¨चता का विषय है। जल बचाने के प्रयास के बजाय उसके नाम पर सरकारी पैसे की बर्बादी की जा रही है। ऐसे में उच्चाधिकारियों द्वारा ठोस अमल किए जाने की जरूरत है। जल के बिना जीवन की कल्पना बेमानी है। यदि अभी से ध्यान नहीं दिया गया तो आने वाले समय में गंभीर परिणाम भुगतने के लिए सभी को तैयार रहना होगा। पर्यावरण असंतुलन के चलते नाना प्रकार की समस्याएं आ रही है, यदि जल भी नहीं बचा तो जीवन कैसे होगा।
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जल का गिरता स्तर काफी दयनीय है। गांवों में स्थित जल संरक्षण के स्त्रोतों को सुरक्षित करने के साथ उसमें पानी की व्यवस्था आवश्यक है। इस दिशा में ठोस कार्यवाही के लिए सभी उपजिलाधिकारियों, तहसीलदारों, खंड विकास अधिकारियों को सकारात्मक कदम उठाने के लिए कड़े निर्देश दिये गए हैं। जहां तक कार्ययोजना की बात है तो जिलाधिकारी के निर्देशन में ठोस पहल किया जाएगा।
अखिलेश तिवारी
प्रभारी डीएम